Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Dec, 2017 11:35 AM
नव वर्ष के आगमन पर बड़ी संख्या में लोगों द्वारा जश्न मनाए जाएंगे व खूब पार्टियां की जाएंगी परंतु देश में ऐसे भी कई लोग हैं जिनके लिए नव वर्ष के कोई मायने नहीं हैं।
गिद्दड़बाहा(संध्या): नव वर्ष के आगमन पर बड़ी संख्या में लोगों द्वारा जश्न मनाए जाएंगे व खूब पार्टियां की जाएंगी परंतु देश में ऐसे भी कई लोग हैं जिनके लिए नव वर्ष के कोई मायने नहीं हैं। यह हैं वह गरीब लोग जिनकी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद है दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना। समय की सरकारों द्वारा भले ही बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के काफी दावे किए जाते हैं परंतु सरकार के दावों की हवा तब निकल जाती है, जब छोटे-छोटे बच्चों को बाल मजदूरी, भीख मांगते व कूड़ों के ढेरों में हाथ मारते देखा जाता है।
यह बच्चे पढऩा तो चाहते हैं परंतु इनकी गरीबी व मजबूरी इनके रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है। यह बच्चे अपना व अपने घर वालों का पेट पालने के लिए सुबह से ही पल्लियां कंधों पर लटका कर कागज चुगते आम देखे जा सकते हैं। इनके लिए हर नया दिन एक नई समस्या के साथ उदय होता है व उस समस्या का हल करने के लिए यह ठंड में नंगे पैर ही रोटी का जुगाड़ करने चल पड़ते हैं।
छोटे-छोटे बच्चे होटलों, ढाबों पर बाल मजदूरी करते आम देखे जा सकते हैं, इनके लिए कोई नव वर्ष, कोई त्यौहार मायने नहीं रखता, मायने रखता है तो बस यह कि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करके अपना व घर वालों का पेट कैसे पालना है। जिस देश के बच्चे ही भीख मांगकर, बाल मजदूरी करके या कचरों में हाथ मारकर अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं, उससे लोगों के भले की क्या आस रखी जा सकती है।
बच्चे बोले पढना चाहते हैं लेकिन...
भीख मांगने वाले बच्चों सोनू व जीत ने कहा कि वह पढऩा तो चाहते हैं परंतु उनके घर के हालात ऐसे नहीं हैं कि वह पढ़ाई कर सकें। उन्होंने कहा कि अगर हम एक दिन भी भीख मांगने न जाएं तो हमारे घर में रोटी नहीं पकती। इसलिए हम पढऩे की बजाय भीख मांगने को मजबूर हैं। इसी तरह कूड़ों के ढेरों में हाथ मारने वाले बच्चों राहुल व मानव ने बताया कि वह सुबह जल्दी उठ जाते हैं व जाकर कूड़ों के ढेरों में से कुछ काम की चीज ढूंढते हैं व फिर कबाड़ को बेचते हैं, जिससे कुछ पैसे मिलते हैं और वह अपने व घर वालों के लिए रोटी का जुगाड़ करते है।