शहर के ढाबों-रेस्तरां, होटल, फैक्टरियों, कारखानों में करवाई जा रही बाल मजदूरी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 04:59 PM

child labor in amritsar

शहर में रोजाना हर चौक-चौराहे पर छोटे बच्चे वाहन चालकों से भीख मांगते नजर आते हैं। डी.सी. कैम्प आफिस से चंद कदम की दूरी पर बच्चे भीख मांगते पाए जाते हैं, जिन्हें देखकर लोग जिला प्रशासन को कोसते नजर आते हैं, कई तो यह कहते सुने जाते हैं ‘...वाह रे जिला...

अमृतसर(रमन): शहर में रोजाना हर चौक-चौराहे पर छोटे बच्चे वाहन चालकों से भीख मांगते नजर आते हैं। डी.सी. कैम्प आफिस से चंद कदम की दूरी पर बच्चे भीख मांगते पाए जाते हैं, जिन्हें देखकर लोग जिला प्रशासन को कोसते नजर आते हैं, कई तो यह कहते सुने जाते हैं ‘...वाह रे जिला प्रशासन’।  

लेबर डिपार्टमैंट द्वारा हर बार कागजों में ही बाल मजदूरी सप्ताह मनाया जाता है व कुछेक जगहों पर छापेमारी कर गिनती के ही बच्चों को काम करते पकड़ते हैं, लेकिन सारे शहर में बाल मजदूरी करते बच्चों की भरमार है। केंद्र सरकार ने 1986 में कानून पास कर 14 साल से कम आयु के बच्चों से काम कराने पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके तहत बच्चों से फैक्टरियों, कारखानों, खदानों में और अन्य कार्य (जिनसे सेहत को खतरा हो) कराना कानूनन अपराध है।

कानून का उल्लंघन करने पर 3 माह से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा 20 हजार रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है। किसी विशेष स्थिति में सजा की अवधि 6 माह से 2 साल तक भी बढ़ाई जा सकती है। विभाग को फोरेस चौक, लारैंस रोड, कस्टम चौक पर रोजाना बच्चे बाल मजदूरी करते नजर नहीं आते हैं, जिन्हें वहां पर हर कोई आने-जाने वाला देखता है, इन्हीं सड़कों पर शहर के 4 बड़े अधिकारी डी.सी., इंकम टैक्स कमिश्नर, निगम कमिश्नर एवं पुलिस कमिश्नर भी यहां से गुजरते हैं, लेकिन किसी ने भी लेबर डिपार्टमैंट को कोई नसीहत नहीं दी। 

विभाग के पास एक तो इंस्पैक्टर की कमी है, दूसरे कार्रवाई भी नाममात्र है। शहर के अनेक ढाबों-रेस्तरां, होटल, फैक्टरियों, कारखानों, चाय की दुकानों रेहडिय़ों व मंडियों में बच्चों से बाल मजदूरी करवाई जा रही है, लेकिन कोई भी लेबर डिपार्टमैंट का अधिकारी किसी पर कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है, सभी अधिकारी छापेमारी के दौरान नेताओं के दबाव को लेकर डरते हैं। छापेमारी के दौरान संस्थानों में काम करने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार का कड़ा कानून है। सुप्रीम कोर्ट के तो यहां तक निर्देश हैं कि जिस भी संस्थान में बाल श्रमिक मिलता है, उससे 20 हजार रुपए हर्जाना वसूल किया जाए और उसमें 5 हजार रुपए सरकार डालकर बाल श्रमिक के परिवार वालों को पुनर्वास के लिए दे। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक निर्देश दे रखे हैं कि बाल श्रमिक के परिवार में से किसी एक को सरकार नौकरी मुहैया करवाए, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। 

खाने-पीने की जगहों पर मांगते हैं भीख 
शहर में जहां पर भी मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, मॉल, मार्कीट, खाने-पीने की जगह, चौक-चौराहों, धार्मिक स्थलों पर लोग भीख मांगने के नाम पर बच्चों से भीख मंगवा कर अपना बिजनैस चला रहे हैं अगर भीख मांगने वाले बच्चों से कोई भी पूछता कि किस के कहने पर भीख मांग रहे हो तो वे बच्चे वहां से भाग जाते हैं। कई बार कुछ एन.जी.ओज के सदस्यों ने इन बच्चों को पकड़ा है व सोशल मीडिया पर ऐसे केस दिखाए हैं कि बच्चे अपने चेहरों पर जख्म दिखाने के लिए चिकन आदि का मांस लगाकर ऊपर पट्टी बांध लेते हैं जिससे लोग इन पर तरस खाकर उन्हें भीख देते हैं। 
 
डिपार्टमैंट की नहीं दिखी कोई हलचल  

लेबर डिपार्टमैंट द्वारा दावा किया जा रहा था कि शहर में बाल मजदूरी खात्मा सप्ताह 14 नवम्बर से मनाया जाएगा। हर वर्ष विभाग द्वारा स्पैशल टास्क फोर्स तो बनाई जाती रही है, लेकिन इस बार विभाग द्वारा कोई हलचल होती नहीं दिखी। शहर में होटल, रैस्टोरैंट, मॉल, काम्पलैक्स, चौक-चौराहों में बच्चे भीख मांगते एवं रेहडिय़ों, दुकानों में काम करते पाए गए। इसको लेकर लेबर कमिश्नर विपिन परमार के फोन पर सम्पर्क किया पर उनसे सम्पर्क न हो सका । 

 

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