Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Nov, 2017 11:00 PM
अमृतसर इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर करोड़ों की लागत से बनाया गया धुंध रोधी कैट-3 सिस्टम फिलहाल विमानों के चालक दल के लिए बेकार साबित हो रहा है। इस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सर्दियों के दिनों में प्रारंभ से ही उड़ानें लेट पहुंचने से यात्रियों को दिक्कतें...
अमृतसर(इन्द्रजीत): अमृतसर इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर करोड़ों की लागत से बनाया गया धुंध रोधी कैट-3 सिस्टम फिलहाल विमानों के चालक दल के लिए बेकार साबित हो रहा है।
इस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सर्दियों के दिनों में प्रारंभ से ही उड़ानें लेट पहुंचने से यात्रियों को दिक्कतें आ रही थीं। इस समस्या के समाधान के लिए एयरपोर्ट अथारिटी ने केन्द्र सरकार से कैट-3 सिस्टम लगवाने की मांग की थी। पिछले 2 वर्षों से निर्माणाधीन कैट-3 सिस्टम पर 100 करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुए जो पिछले दिनों शुरू हो चुका है, किन्तु यान के चालक दल इस सिस्टम का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं, क्योंकि यह 50 मीटर से कम विजीबिलिटी में काम नहीं कर रहा है।
जीरो विजीबिलिटी में भी काम करने का था दावा
धुंध रोधी सिस्टम (कैट-3) के बारे में पिछले कई वर्षों से घोषणाएं की जा रही थीं कि इससे धुंध के बावजूद विमान आसानी से उतर व उड़ान भर सकेंगे। यह भी दावा किया गया था कि जीरो विजीबिलिटी में भी यह सिस्टम कामयाब रहेगा, किन्तु शुरू होने के बाद पता चला है कि कैट-3 सिस्टम 50 मीटर तक सादृश्यता (विजीबिलिटी) से कम में काम नहीं कर सकता। अर्थात 50 मीटर के अंदर भी यदि धुंध हो तो सिस्टम चालू होने बाद चालक दल के लिए विमान की लैंङ्क्षडग असंभव हो जाएगी।
कैसे काम करता है कैट-3
सिस्टम के मुताबिक रनवे पर इस प्रकार लाइट का जाल बिछाया जाता है कि जैसे ही विमान लैंड करता है तो रनवे पर लाइट विमान के आगे-आगे दौड़ती हैं और चालक दल को रास्ता दिखाती हैं। यह सिस्टम पूरे विश्व में प्रभावशाली माना जा रहा है लेकिन इस हवाई अड्डे पर कारगर सिद्ध नहीं हो रहा।
क्यों पड़ती है अमृतसर में इतनी सर्दी
अमृतसर क्षेत्र में सर्दी के रिकार्ड के बारे में विशेषज्ञों का तर्क है कि धरती की सुरक्षा के लिए बनी ओजोन परत में एक्सोस्फियर, मैसोस्फियर, आइनोसोस्फियर, स्ट्रेट्रोस्फियर, ट्रोपोस्फियर, थर्माेस्फियर हैं जो धरती के वातावरण को सामान्य रखती हैं। इनमें सबसे निचली परत जिसे ट्रोपो कहा जाता है, की ऊंचाई धरती से 19 कि.मी. है, जिसके बीच विमान, बादल व धरती पर रहने वाले जीवों को पर्यावरण मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रोपोस्फियर से ऊपरी परत जिसे स्ट्रेट्रोस्फियर कहते हैं और जो सूरज से निकलती पैराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रेज) को सोख लेती है, का वजन जब धरती पर पड़ता है तो तेज हवाएं चलती हैं। इसी बीच पहाड़ी क्षेत्रों के ठंडे बर्फीले पर्वतों पर जब दबाव पड़ता है तो वहां से ठंडी हवाएं एक निश्चित कोण में 19 कि.मी. की ऊंचाई से मैदानी क्षेत्रों की ओर गोलाकार आकृति में बढ़ती हैं जो कुछ विशेष स्थानों पर अपना सर्द प्रभाव छोड़ती हैं।
नवम्बर के पहले सप्ताह में ही पडऩे लगी है धुंध
अमृतसर एयरपोर्ट पर इस अचानक पडऩे वाली धुंध के कारण भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि नवम्बर के पहले सप्ताह में पंजाब के मैदानी क्षेत्रों में धुंध का प्रकोप नहीं होता किन्तु अमृतसर में पिछले 2 दिनों से पड़ रही बेमौसमी धुंध ने जहां पूरे क्षेत्र में आवागमन को अवरुद्ध कर दिया है, वहीं एयरपोर्ट पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखने को मिल रहा है। बीते दिन शाम के समय 4 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। इनमें से 2 विमान तो अमृतसर एयरपोर्ट से वापिस दिल्ली में उतारने पड़े।
अमृतसर की सर्दी बन रही अधिक धुंध का कारण
अमृतसर के बारे में कहावत है कि यहां सर्दी पूरे देश के मैदानी इलाकों से अधिक पड़ती है। इसी कारण अमृतसर व इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी में धुंध भी अधिक पड़ती है। यहां घनी धुंध में विजीबिलिटी जीरो हो जाना आम बात है।
कुछ विशेषताएं भी हैं अमृतसर के वातावरण में
इन क्षेत्रों में पानी में खारापन नहीं होता। इन क्षेत्रों में सीलन आम क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत कम होती है। त्वचा रोग बहुत कम होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी यह क्षेत्र हवाई उड़ानों के लिए बेहतर समझे जाते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इंगलैंड के इंजीनियरों ने यहां पर उपरोक्त सभी चीजों का अनुमान लगाते हुए ही अमृतसर में हवाई अड्डा बनाने का योजना तैयार की थी। हालांकि मैदानी क्षेत्रों में अमृतसर के अतिरिक्त आदमपुर और हिसार भी ऐसे क्षेत्र हैं।
क्या कहते हैं एयरपोर्ट के महानिदेशक
इस संबंध में बात करने पर अमृतसर एयरपोर्ट के महानिदेशक मनोज चनसोलिया ने बताया कि कैट-3 सुविधा काम कर रही है लेकिन इसमें जीरो विजीबिलिटी के कारण विमान चालकों को को सादृश्यता की परेशानी आती है। इस कारण विमान जीरो विजीबिलिटी में उड़ाने नहीं भर सकते।