Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 08:48 AM
निहाल सिंह वाला में सब डिवीजन मैजिस्ट्रेट दफ्तर के नजदीक बना ब्लाक स्तरीय सी.डी.पी.ओ. दफ्तर एस.डी.एम. के आदेश के बावजूद आज भी अनसेफ इमारत में चल रहा है। अनसेफ इमारत में चल रहे इस दफ्तर संबंधी ‘पंजाब केसरी’ में 8 जून को विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की गई...
निहाल सिंह वाला/बिलासपुर (बावा/जगसीर): निहाल सिंह वाला में सब डिवीजन मैजिस्ट्रेट दफ्तर के नजदीक बना ब्लाक स्तरीय सी.डी.पी.ओ. दफ्तर एस.डी.एम. के आदेश के बावजूद आज भी अनसेफ इमारत में चल रहा है। अनसेफ इमारत में चल रहे इस दफ्तर संबंधी ‘पंजाब केसरी’ में 8 जून को विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसका नोटिस लेते एस.डी.एम. निहाल सिंह वाला ने पत्र लिखकर इस सी.डी.पी.ओ. दफ्तर को तुरंत खाली करने के आदेश जारी किए थे, लेकिन इस दफ्तर को कहां शिफ्ट किया जाना है यह न तो दफ्तर के अधिकारियों को पता था तथा न ही प्रशासनिक अधिकारियों को।
एस.डी.एम. दफ्तर द्वारा 5 जुलाई को सी.डी.पी.ओ. दफ्तर को नोटिस दिया गया था कि यह दफ्तर तुरंत खाली किया जाए, क्योंकि यह दफ्तर पिछले 3 सालों से अनसेफ इमारत में चल रहा था। सी.डी.पी.ओ. दफ्तर में जून महीने पंजाब राज्य पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने छापा मारकर दफ्तर के खिलाफ बिजली चोरी करने का मामला दर्ज कर लिया था तथा दफ्तर को 35,117 रुपए का जुर्माना भी ठोक दिया था। इसके बाद ‘पंजाब केसरी’ द्वारा की जांच में यह तथ्य सामने आया कि यह दफ्तर विभाग की ओर से अनसेफ करार दी गई इमारत में चल रहा है।
नहीं हुआ नई जगह का प्रबंध
विभाग के सूत्रों अनुसार बेशक इस दफ्तर को तुरंत खाली करने के आदेश दिए गए थे, लेकिन इस दफ्तर के लिए नई जगह का कोई प्रबंध नहीं हुआ। कार्य करते कर्मचारियों के लिए यह दफ्तर किसी आफत से कम नहीं, क्योंकि अनसेफ करार दी गई इमारत में है।
पैंशनों व घरेलू झगड़ों के भी केस पहुंचते हैं दफ्तर
इस दफ्तर में जहां समूचे ब्लाक के बुढ़ापा, विधवा व दिव्यांग पैंशनों के केस पहुंचते हैं, वहीं घरेलू हिंसा के केस अदालत द्वारा समझौते के लिए भेजे जाते हैं।
बच्चों की क्या सेफ्टी करेंगे खुद के हैं अनसेफ दफ्तर
एक तरफ नेता जहां तरक्की के दावे करते देश में 5 साल की उम्र से कम बच्चों की मौत दर में पहले 5 देशों में भारत का नाम आता है। देश की गरीब आबादी को बेजरूरी पौष्टिक भोजन, साफ-सुथरा पानी न मिलना, टीकाकरण तथा बुनियादी सहूलियतों की कमी है, लेकिन 2020 तक देश का 12 लाख नवजात बच्चों की मौत के वार्षिक आंकड़े को कम करने का निर्धारित लक्ष्य फिलहाल मुश्किल लगता है, क्योंकि 21वीं सदी में भी बच्चों तथा महिलाओं के लिए सहूलियतें देने वाले जिन सी.डी.पी.ओ. दफ्तरों के पास अपने पुनर्वास के लिए कोई जगह नहीं, उनसे सहूलियतों की क्या उम्मीद की जा सकती है।
इस दफ्तर अधीन 39 गांवों के 12,493 बच्चों, 530 गर्भवती महिलाओं तथा 599 नॄसग माताओं को विभाग की ओर से पौष्टिक खुराक दी जा रही है। इस पौष्टिक खुराक में पंजीरी, गेहूं, चावल, चीनी, दूध तथा घी दिया जाता है। बच्चों को 3 दिन दूध तथा 3 दिन हलवा दिया जाता है। विभाग के रिकार्ड अनुसार एक साल की 200 क्विंटल गेहूं, 135 क्विंटल चावल, 80 क्विंटल चीनी, 380 टीन दूध, 476 पंजीरी गट्टे तथा घी के टीन एक साल के राशन में खपत होते हैं।