अनुच्छेद 25बी को लेकर अकाली-भाजपा में ठनी,उठा सिख आरक्षण का मुद्दा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 04:27 PM

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पंजाब में सत्ता बदलते ही अकाली-भाजपा के रिश्ते में दरार साफ देखी जा सकती है पहले सीटों को लेकर ये तकरार थी अब सिख आरक्षण पर दोनों आमने-सामने हैं।

जालंधर(सोनिया गोस्वामी): पंजाब में सत्ता बदलते ही अकाली-भाजपा के रिश्ते में दरार साफ देखी जा सकती है। पहले सीटों को लेकर ये तकरार थी अब सिख आरक्षण पर दोनों आमने-सामने हैं। पंजाब भाजपा अध्यक्ष और राज्य केंद्रीय मंत्री विजय सांपला का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25बी में संशोधन के लिए शिअद की मांग सिख अनुसूचित जातियों के आरक्षण पर प्रतिकूल असर डालेगी जबकि शिअद का कहना है कि अनुच्छेद 25बी के साथ सिख अनुसूचित जनजाति का कोई लेना-देना नहीं। वहीं राज्यसभा के पूर्व सदस्य त्रिलोचन सिंह, उपाध्यक्ष राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) ने अपने कार्यकाल के दौरान संसद में निजी सदस्य के विधेयक में संशोधन करने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा कि सांपला का बयान गुमराह करने वाला है जो दलित सिखों के बीच भय पैदा करेगा।

 

क्या है अनुच्छेद 25

इसका अर्थ धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद 25 अनुसार सिख अलग पहचान की मांग कर रहे हैं। अंत:करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है।

 

आरंभ से नहीं दिया गया था सिखों को आरक्षण

शिअद के महासचिव और राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि सिखों को आरम्भ में आरक्षण नहीं दिया गया था। इसे मास्टर तारा सिंह ने एक आंदोलन (1950 के दशक में) के बाद शुरू किया था। यह अनुच्छेद 25बी के माध्यम से नहीं दिया गया था क्योंकि इस अनुच्छेद के प्रावधान के साथ आरक्षण का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि वैंकटचलैया आयोग ने संशोधन की सिफारिश की है। त्रिलोचन सिंह ने तर्क दिया था कि  अगर सिख हिंदू थे तो उन्हें हिंदुओं के साथ ये सुविधा क्यों नहीं दी गई। अल्पसंख्यक आयोग 1978 में स्थापित किया गया था और संसद ने अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम को पारित करते समय सिखों को एक अलग धर्म के रूप में अल्पमत का दर्जा दिया गया था। यहां तक कि बौद्ध, जो हिंदू नहीं हैं, उन्हें बाद में अनुसूचित जाति की सुविधा दी गई थी।  

 

सूत्रों ने बताया कि कुछ वरिष्ठ शिअद नेताओं ने इस मुद्दे पर संशोधन के संदर्भ में आरक्षण के बारे में संदेह व्यक्त किया।  जब इस विषय में वरिष्ठ शिअद नेता, पूर्व लोकसभा स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल, जो पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष थे और एससी समुदाय से हैं से पुछा तो उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।अमरीका आधारित वकील जी.एस. लांबा,जो सिखों के कानूनी मुद्दों पर मुखर रहे हैं, ने कहा सिखों में अनुसूचित जातियों के लिए अनुच्छेद 25 बी के साथ कुछ नहीं है। उन्होंने कहा, "बीजेपी नेता का दृष्टिकोण सिखों में एक डर मनोविकृति पैदा कर रहा है। उन्होंने कहा सिख की अलग पहचान की मांग शिअद के पंथक एजैंडे का हिस्सा रही है और सिख मतदाताओं के साथ अपनी खोई छवि हासिल करने के प्रयास में फिर से इस तरह का मुद्दा उठाया गया है।

 

बता दें कि भारतीय संविधान में सिख पंथ को अलग मजहब के तौर पर दर्ज करवाने की दिशा में शिरोमणि अकाली दल एवं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली तथा केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ इस मसले पर मुलाकात की थी। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दल के प्रधान महासचिव तथा राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा ने किया था। प्रतिनिधिमंडल में सांसद प्रेम सिंह चन्दुमाजरा, बलविंदर सिंह भूंदड, दिल्ली कमेटी अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके तथा पूर्व राज्यसभा सदस्य त्रिलोचन सिंह शामिल थे।

 

इसके बाद जीके तथा त्रिलोचन सिंह ने संविधान की धारा 25 के खंड 2बी में संशोधन करने की वकालत की। जीके ने कहा था कि देश का संविधान हमें सिख नहीं मानता। इसलिए अकाली दल पिछले लंबे समय से संविधान में संशोधन कराने की लड़ाई लड़ रहा है। 1950 के दशक के दौरान संविधान सभा में मौजूद अकाली दल के दोनों प्रतिनिधियों भूपिन्दर सिंह मान तथा हुक्म सिंह ने इसी कारण ही संविधान के मसौदे पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद 1990 के दशक दौरान पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा शिरोमणि कमेटी के पूर्व अध्यक्ष गुरचरण सिंह टोहड़ा भी दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान संविधान की प्रति को जला चुके हैं।

 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल दौरान संविधान संशोधन की संभावना तलाशने के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वैंकटचलैया के नेतृत्व में राष्ट्रीय संविधान विश्लेषण आयोग बनाने की जानकारी देते हुए जी.के. ने बताया था कि आयोग ने इस मसले पर संविधान की संशोधन की सिखों की मांग का समर्थन किया था। राज्यसभा में त्रिलोचन सिंह द्वारा इस मसले पर पेश किए गए निजी विधेयक के बाद अकाली दल के खडूर साहिब से लोकसभा सदस्य रतन सिंह अजनाला को लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 23 अगस्त 2013 को संविधान संशोधन के लिए निजी विधेयक पेश करने की मंजूरी दी थी।

 


 


 

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