बचपन पर भारी पड़ रहा दो वक्त की रोटी का जुगाड़,हाथों में किताबों की बजाय होते हैं जूठे बर्तन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Nov, 2017 10:22 AM

arrange two square meals a day taking a heavy toll on childhood

14 नवम्बर को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को मुख्य रखते बाल दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों व विभिन्न संस्थाओं में होने वाले समागमों दौरान उच्चाधिकारी...

मोगा (ग्रोवर): 14 नवम्बर को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को मुख्य रखते बाल दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों व विभिन्न संस्थाओं में होने वाले समागमों दौरान उच्चाधिकारी तथा नेता जोर-जोर से बाल मजदूरी को रोकने के लिए तकरीरें देते हैं लेकिन बाल मजदूरी को अभी भी पूर्ण रूप से रोका नहीं गया है।

असलियत यह है कि इसदिन के बाद दुकानों पर बाल उम्र में बर्तन साफ करते बच्चों को रोकने के लिए कभी भी सख्ती नहीं होती तथा यदि कहीं कोई कार्रवाई होती है तो यह भी सिर्फ खानापूॢत के बराबर ही है, जिस कारण पढ़ाई की उम्र में बाल सरेआम मजदूरी कर दो वक्त की रोटी कमाते हैं।हैरानी की बात तो यह है कि पिछले सालों दौरान किसी भी बड़ी सामाजिक संस्था ने बाल मजदूरी को रोकने के लिए आवाज नहीं उठाई, जिस कारण सरकार द्वारा बनाए एक्ट की धज्जियां उड़ रही हैं।

मुझे कभी भी किसी ने मजदूरी करने से नहीं रोका : बाल मजदूर
मोगा मंडी में सब्जियां बेचने वाले एक छोटे से बच्चे ने बताया कि वह तथा उसका परिवार यू.पी. में से पंजाब राज्य में कमाई करने के लिए आया है तथा आज के महंगाई के युग में पढऩा तो दूर की बात दो वक्त की रोटी का प्रबंध करना भी उनके वश की बात नहीं, जिस कारण उसका सारा परिवार मजदूरी करके अपना निर्वाह कर रहा है। शहर से बाहर हाईवे रोड पर भट्ठी से मूंगफली भूनकर बेचने वाले प्रवासी बाल मजदूर ने बताया कि वह साल में नवम्बर-दिसम्बर से लेकर फरवरी के अंत तक मूंगफली बेचने विभिन्न राज्यों में जाते हैं तथा बड़ी-बड़ी कारों में बैठे कई अधिकारी उनसे भूनी हुई मूंगफली जरूर खाकर जाते हैं, लेकिन कभी भी किसी ने उनको पढ़ाने या बाल मजदूरी करने से नहीं रोका।

वास्तविकता को देखकर लगता है सरकारी फाइलों का शृंगार बनकर रह गया है ‘राइट-टू एजुकेशन’
‘पंजाब केसरी’ द्वारा आज शहर के विभिन्न होटलों तथा व्यापारिक संस्थाओं के साथ-साथ कई घरों तथा मार्कीटों का दौरा किया गया। इस दौरान यह बात उभरकर सामने आई कि बड़ी गिनती में छोटी उम्र के बच्चे अपना तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए श्रम करते हैं। बेशक केन्द्र सरकार ने नया कानून ‘राइट-टू एजुकेशन’ पास कर प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा जरूरी करार का संदेश दिया है, लेकिन ऐसे हालातों में यह लगता है कि सरकार का यह कानून सिर्फ फाइलों का शृंगार बनकर ही रह गया है।

मोगा शहर के मेन चौक में जहां अक्सर ही टै्रफिक पुलिस के कर्मचारी तैनात रहते हैं तथा चौक के बिल्कुल साथ ही पुलिस थाना भी है, लेकिन चौक में छोटी-छोटी उम्र के बेसहारा बच्चे राहगीरों की गाडिय़ों को रोककर उस पर कपड़ा फेरकर रोटी का जुगाड़ करने के लिए गिड़गिड़ाते हैं, परंतु कानून के रखवालों की इन बालकों पर कभी नजर नहीं पड़ी। मोगा शहर के एक ढाबे पर बर्तन साफ करने तथा चाय बनाने का कार्य करते एक प्रवासी बच्चे रवि ने बताया कि उसका परिवार गरीबी में जिंदगी व्यतीत कर रहा है तथा उसकी व उसके भाई-बहन की पढ़ाई करवाने से असमर्थ है, जिस कारण मजबूरन उसको अपना राज्य छोड़कर पंजाब में आकर मजदूरी करनी पड़ रही है।

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