Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Feb, 2018 09:58 AM
मामला चाहे गुडग़ांव के रेयान इंटरनैशनल स्कूल का हो या फिर जालंधर के कैंब्रिज स्कूल का.., बच्चे न तो स्कूलों में सुरक्षित हैं और न ही सड़कों पर। रेयान इंटरनैशनल स्कूल में हुए सनसनीखेज हत्याकांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई तरह...
जालंधर(रविंदर शर्मा): मामला चाहे गुडग़ांव के रेयान इंटरनैशनल स्कूल का हो या फिर जालंधर के कैंब्रिज स्कूल का.., बच्चे न तो स्कूलों में सुरक्षित हैं और न ही सड़कों पर। रेयान इंटरनैशनल स्कूल में हुए सनसनीखेज हत्याकांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई तरह की गाइडलाइंस जारी की थीं। कुछ दिन सख्ती व सरगर्मी दिखाई गई मगर हादसों की लौ ठंडी पड़ते ही स्कूल प्रबंधन, सरकारें, प्रशासन और सभी एजैंसियां भी ठंडी पड़ गई हैं। जिला प्रशासन व ट्रैफिक पुलिस तो इस कदर अपने काम में नाकाम हैं कि वह बच्चों को सड़कों पर भी सुरक्षा देने में नाकाम हैं।
सरेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए आज भी अवैध आटो चालक बच्चों को आटो में ठूंस-ठूंस कर स्कूल पहुंचाते हैं। न तो स्कूल प्रबंधन बच्चों के लिए सुरक्षित यातायात प्रबंध मुहैया करवा पाया है और न ही अभिभावक ही अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति गंभीर दिखाई दे रहे हैं। हालात तो यह हैं कि महानगर के 90 प्रतिशत स्कूलों के पास खुद के यातायात प्रबंध ही नहीं हैं। जितनी स्कूलों में बच्चों की संख्या है उसके लिए उनके पास पर्याप्त बसें ही नहीं हैं। अगर हैं भी तो उनकी महीने की फीस इतनी ज्यादा है कि गरीब व मध्यम वर्ग अपने बच्चों को सुरक्षित स्कूल यातायात प्रबंध मुहैया ही नहीं करवा पाता है। मगर इन सब नाकामियों के बीच सरकार व शिक्षा मंत्री की चुप्पी समझ से परे है। बच्चों को देश का उज्ज्वल भविष्य बनाने की जिम्मेदारी निजी व सरकारी स्कूलों के कंधों पर है। मगर दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश स्कूल बच्चों को सुरक्षित माहौल देने की बजाय सिर्फ लूटखसूट में लगे हुए हैं। रेयान इंटरनैशनल स्कूल में बच्चे की सनसनीखेज हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कई तरह की गाइडलाइंस स्कूलों के लिए जारी की थीं मगर शीर्ष अदालत के दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर लगातार हादसों को न्यौता दिया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा पर दिए हैं साफ निर्देश
बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने वाले अपने दिशा-निर्देशों में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ तौर पर कहा है कि स्कूल प्रबंधन को बच्चों की सुरक्षा से संबंधित मसले को लेकर समय-समय पर या फिर होने वाली बैठकों में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों से बात करनी चाहिए और इन्हें इस बारे में एहतियाती जानकारी देनी चाहिए। इसमें शीर्ष अदालत ने यह भी दिशा-निर्देश दिया है कि स्कूल आते और जाते समय बच्चों की निगरानी करने के लिए स्कूल प्रशासन की ओर से कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए। खास तौर पर तब जब बच्चों की छुट्टी का समय हो, उनके खेलने का समय हो या फिर टायलेट जा रहे हों। इसके अलावा स्कूल आते व जाते समय सुरक्षित यातायात प्रबंध उपलब्ध करवाना भी स्कूल प्रबंधन का फर्ज है। बच्चों को या तो उनके माता-पिता अपने वाहनों से सुरक्षित स्कूल पहुंचाएं या फिर स्कूल प्रबंधन इसके लिए उचित प्रबंध करे। किसी भी प्राइवेट वाहन या आटो में बच्चों को स्कूल न तो लाया जा सकता है और न ले जाया जा सकता है।
सभी स्कूलों को जारी की गई है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस
शिक्षामंत्री अरुणा चौधरी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस सभी स्कूलों को जारी की गई हैं। वह कहती हैं कि सुरक्षित यातायात प्रबंध उपलब्ध करवाना स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी है। सभी जिलों की ट्रैफिक पुलिस को यह यकीनी बनाना होगा कि बच्चे स्कूल बस में ही सुरक्षित स्कूल पहुंचें, न कि उन्हें आटो में ठूंस-ठूंस कर ले जाया जाए। ऐसा सभी जिलों के एस.एस.पी. व पुलिस कमिश्रर को यकीनी बनाना होगा और ऐसे आटो चालकों को जब्त किया जाए।
सुरक्षा उपायों और निर्देशों का पालन करना हर स्कूल की जिम्मेदारी
वरिष्ठ एडवोकेट उपिंद्रजीत सिंह ठाकुर का कहना है कि देश की शीर्ष अदालत अगर कोई दिशा-निर्देश जारी करती है तो वह खुद एक कानून है। यह केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वह उन दिशा-निर्देशों का पालन किस तरह से और कितना करते हैं। उनका कहना है कि किसी तरह का हादसा न हो, इसके लिए हरेक स्कूल की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सुरक्षा के मानकों और दिशा-निर्देशों का पालन करे। यही नहीं राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि यदि राष्ट्रीय राजमार्ग या फिर अन्य सड़कों के किनारे स्कूल संचालित किया जा रहा है तो वह उस क्षेत्र में विशेष तौर पर ट्रैफिक पुलिस के कर्मचारियों को तैनात करे। इससे स्कूल परिसर के बाहर सड़कों पर वाहनों के आवागमन को नियंत्रित किया जा सकेगा। छुट्टी के समय बच्चों को सुरक्षित और नियंत्रित करने की जिम्मेदारी पूरी तरह से स्कूल प्रबंधन की है।