Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jan, 2018 09:50 AM
आज नए वर्ष के अवसर पर जहां लोग अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को मिलकर नव वर्ष की बधाई देकर जश्न मनाने में व्यस्त हैं, वहीं झुगी-झोंपडिय़ों में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए नए वर्ष का पहला दिन पिछले वर्ष की तरह कूड़े के ढेर से अपने परिवार के लिए रोटी का...
कपूरथला (गुरविन्द्र कौर): आज नए वर्ष के अवसर पर जहां लोग अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को मिलकर नव वर्ष की बधाई देकर जश्न मनाने में व्यस्त हैं, वहीं झुगी-झोंपडिय़ों में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए नए वर्ष का पहला दिन पिछले वर्ष की तरह कूड़े के ढेर से अपने परिवार के लिए रोटी का जुगाड़ करने की जद्दोजहद से शुरू होगा।
मां-बाप के होते हुए व सरकार के सामाजिक, बाल सुरक्षा व भलाई विभाग के लाख वायदों के बावजूद ये बच्चे पढऩे-लिखने की उम्र में कूड़े के ढेरों में मिट्टी होने के लिए मजबूर हैं। हैरानी की बात है कि लाखों रुपए के बजट वाला रैडक्रॉस व शिक्षा विभाग पता नहीं किन लोगों की भलाई करने में व्यस्त है, जबकि प्रशासन व शिक्षा विभाग द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि 14 वर्ष से कम आयु का कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित नहीं रहेगा।
प्रशासन की ढीली कारगुजारी
बच्चों के अधिकारों के लिए एक्ट-1989 के बाल न्याय कानून 2000, 2006, 2009 बनाए गए हैं। वहीं प्रशासन द्वारा बाल मजदूरों को मुक्त करने के लिए बाल सप्ताह मनाए जाते हैं जिसके तहत छापेमारी करके बाल मजदूरों को मुक्त करवाया जाता है। परंतु बाल मजदूरों को मुक्त करने के लिए कानूनी कार्रवाई लगातार जारी न रहने के कारण बाल मजदूरी करवाने वालों के हौसले पूरी तरह से बुलंद हो जाते हैं जिस कारण बाल मजदूरी उसी तरह चलती रहती है।
कंधे पर स्कूल बैग कि बजाय बोरी टांगकर तलाशते हैं भविष्य
यह आजाद भारत के ऐसे बच्चे हैं जिनके दरवाजों पर खुशियों ने कभी दस्तक नहीं दी। उनकी जिंदगी का मकसद दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है। यह छोटे-छोटे बच्चे दिन चढ़ते ही शिक्षा का अधिकार जैसी बुनियादी सहूलियतों के तहत कंधे पर स्कूल बैग कि बजाय बोरी टांगकर कूड़े के ढेर में घूम कर अपना भविष्य तलाशते हैं। कूड़ा उठाने वाले इन बच्चों जैसे ऐसे अनेकों मासूमों के लिए भी नया वर्ष खुशी भरा नहीं होता जो होटलों, ढाबों, भट्ठों आदि में मजदूरी करते नजर आते हैं व अपने घर-परिवार के साथ-साथ अपनी जिंदगी का बोझ बिना किसी खुशी के जीने के लिए मजबूर होते हैं।
मजबूरियों तले दबे हैं सपने
बाल मजदूरी के संबंध में जब बाल मजदूरों के अभिभावकों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि 2 वक्त की रोटी कमाना ही उनके लिए कानून है व कड़ी मेहनत के साथ ही उनको 2 वक्त की रोटी नसीब होती है। उन्होंने कहा कि उनका भी मन करता है कि दूसरे बच्चों की तरह हमारे बच्चे भी स्कूल जाएं पर हमारे सपने मजबूरियों तले दबे हुए हैं।