म्यांमार तक दुश्मनों को धूल चटा चुके हैं ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के यह ‘चाणक्य’

Edited By Updated: 01 Oct, 2016 10:26 AM

surgical strike ranbir singh

देश के लिए मरने-मिटने की बात हो या फिर बहादुरी दिखाने का मौका, पंजाब के लोग दोनों ही  मामले  में  काफी ..

जालंधर (पाहवा): देश के लिए मरने-मिटने की बात हो या फिर बहादुरी दिखाने का मौका, पंजाब के लोग दोनों ही  मामले  में  काफी आगे रहे हैं। दुश्मन की जमीन पर जाकर उसके दांत खट्टे कर बिना किसी  नुक्सान  के अपनी धरती पर लौट आने का जो पराक्रम आजकल देशभर में चर्चित है उसका हीरो भी पंजाब से ही संबंधित है। 

पंजाब का हीरो है लै. जनरल रनबीर सिंह 
पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.)  में आतंकवादियों के खिलाफ चले सर्जिकल स्ट्राइक में सैन्य अभियान निदेशालय के महानिदेशक (डी.जी.एम.ओ.) लै. जनरल रनबीर सिंह पंजाब के होशियारपुर जिले के गांव कंदाला जट्टां में पैदा हुए हैं। गढ़दीवाल के पास स्थित इस गांव में हरभजन सिंह के घर पैदा हुए रनबीर सिंह बचपन से ही प्रतिभावान रहे हैं। रनबीर सिंह के 3-4 वर्ष की आयु में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके चाचा मनमोहन सिंह ने किया। यह मनमोहन सिंह कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि सेना में तैनात रह कर देश सेवा कर चुके कर्नल मनमोहन सिंह हैं, जो उप निदेशक सैनिक भलाई बोर्ड में ऊंचे पद पर भी रहे हैं। 

जज्बे को सलाम
जालंधर के निवासी कर्नल (रिटा.) मनमोहन सिंह बताते हैं कि आज के डी.जी.एम.ओ. रनबीर सिंह चौथी कक्षा तक जालंधर में सेंट जोसफ स्कूल में पढ़े जबकि 5वीं से लेकर 10वीं कक्षा उन्होंने सैनिक स्कूल कपूरथला से पूरी की। उसके बाद उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी में स्थान मिल गया जहां से उन्हें 9 डोगरा रैजीमैंट में तैनात किया गया। इसके बाद अपनी मेहनत के दम पर रनबीर सिंह लगातार आगे बढ़ते गए। पहले स्कूल फिर सैन्य अकादमी तथा आगे जाकर सेना के हर टैस्ट में रनबीर सिंह ने सफलता हासिल की। आज जब सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पंजाब का यह जांबाज पूरी दुनिया में छाया हुआ है तो उनके  चाचा कर्नल (रिटा.) मनमोहन सिंह सीना  चौड़ा कर कहते हैं कि रनबीर देश के लिए कुछ करेगा, यह तो वह उसके जज्बे से ही जानते थे। 

DGMO से पहले आप्रेशन पराक्रम में भी ले चुके हैं हिस्सा
कारगिल में अप्रेशन  विजय के बाद वर्ष 2001 में चलाए गए आप्रेशन पराक्रम में भी मौजूदा डी.जी.एम.ओ. रनबीर सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। उसके बाद वर्ष 2015 में म्यांमार में चलाए गए अप्रेशन में भी भारतीय सेना के साथ डी.जी.एम.ओ.  रनबीर सिंह ने अहम भूमिका निभाई। डी.जी.एम.ओ. रनबीर सिंह को उनके बेहतर कार्य के लिए आज  तक तीन (‘अति वश्ष्टि सेना मैडल’, ‘युद्ध मैडल’ तथा ‘सेना मैडल’ )अवार्ड मिले हैं।  इसके साथ-साथ उन्होंने इंगलैंड में एक वर्ष की काऊंटर इनसर्जैंसी ट्रेनिंग भी की है।  डी.जी.एम.ओ. रनबीर सिंह दूसरे ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें टैंक डिवीजन को लीड करने का अवसर मिला। 

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