Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 10:12 AM
लंबे समय के इंतजार के बाद शहर को नए मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर मिल गए हैं। वैस्ट हलके से जहां दो-दो नेताओं को निगम सदन के पहले तीन पदों में से दो अहम पद नसीब हुए हैं, वहीं नार्थ हलके के कई सीनियर पार्षदों की अनदेखी पार्टी के भीतर बगावत...
जालंधर (रविंदर शर्मा): लंबे समय के इंतजार के बाद शहर को नए मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर मिल गए हैं। वैस्ट हलके से जहां दो-दो नेताओं को निगम सदन के पहले तीन पदों में से दो अहम पद नसीब हुए हैं, वहीं नार्थ हलके के कई सीनियर पार्षदों की अनदेखी पार्टी के भीतर बगावत पैदा कर सकती है। नार्थ हलके के पार्षद न केवल खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, बल्कि वे नार्थ हलके के विधायक बावा हैनरी से भी नाराज चल रहे हैं। इन पार्षदों का कहना है कि नार्थ हलके की हमेशा से हलके की लीडरशिप ने अनदेखी की है।
उनकी बात को कभी भी हाईकमान तक सही तरीके से नहीं पहुंचाया गया । अंदर ही अंदर सुलग रही यह आग कभी भी ज्वाला का रूप ले सकती है। गौर हो कि नार्थ हलके से 85 प्रतिशत कांग्रेसी पार्षद जीत कर निगम सदन हाऊस में पहुंचे थे। इनमें से ज्ञान सोढी तो ऐसे पार्षद थे, जो पांचवीं बार निगम सदन में पहुंचे थे। मगर इनके नाम पर एक बार भी पहले तीन पदों के लिए विचार-विमर्श नहीं किया गया। ज्ञान सोढी के समर्थक कहते हैं कि वैसे तो वह मेयर पद के लिए उपयुक्त थे, मगर पार्टी हाईकमान ने तो उन्हें डिप्टी मेयर तक बनाना जरूरी नहीं समझा। इसके अलावा देस राज जस्सल और निर्मल सिंह निम्मा भी इलाके के ऐसे चेहरे थे, जो साफ सुथरी-छवि और लगातार जनता का दिल जीत कर निगम हाउस में पहुंचे थे। मगर इनके नामों पर भी कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। इसके अलावा दो-दो बार जीतने वाले पार्षदों की संख्या तो काफी थी। मगर नार्थ हलके के हाथ बिल्कुल खाली रहे। इसके लिए हलके के पार्षद अपने हलके की लीडरशिप को ही दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि हैनरी परिवार ने कभी नहीं चाहा कि इलाके में कोई दूसरा नेता मजबूत होकर उभरे।
यहीं कारण रहा कि चार बार या पांच बार जीतने वाले पार्षदों की सही तरीके से हाईकमान के सामने पैरवी नहीं की गई, जबकि इन्हीं पार्षदों ने न केवल मजबूती से खड़े होकर बावा हैनरी को टिकट हाईकमान से दिलवाई थी, बल्कि रिकार्डतोड़ मतों से जीत भी दिलाई थी। नार्थ हलके की पूरी तरह से अनदेखी होने से पार्षदों का यह गुस्सा आने वाले दिनों में हलका विधायक समेत पार्टी हाईकमान पर भी फूट सकता है। वहीं कैंट हलके को तो नजरअंदाज किया ही गया, बल्कि वहीं चार बार पार्षद बने सीनियर नेता व प्रदेश कांग्रेस के महासचिव बलराज ठाकुर को भी हाईकमान ने कोई तवज्जो नहीं दी, जबकि हकीकत यह थी कि बलराज ठाकुर की अच्छी छवि व जनता के बीच पैठ के कारण ही कैंट व वैस्ट हलके की काफी सीटों पर पार्टी को जीत नसीब हुई थी। बलराज ठाकुर को पूरी उम्मीद थी कि हलका विधायक परगट सिंह उनके लिए मजबूती से हाईकमान के सामने खड़े होंगे और स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू व मुख्यमंत्री के सामने उनकी बात को रखेंगे। मगर आखिरी पल तक परगट सिंह की खुद की मेयर पद पर बैठने की उम्मीदें कायम रहीं और वह बलराज ठाकुर के लिए एक बार भी मुंह नहीं खोल पाए। जबकि इसी बलराज ठाकुर ने विधानसभा चुनाव में परगट सिंह के लिए दिन-रात एक कर दिया था। बलराज ठाकुर को नजरअंदाज करना आने वाले दिनों में कैंट हलके में पार्टी को नुक्सान पहुंचा सकता है। वहीं वैस्ट हलके पर जिस तरह से हाईकमान ने दो पद देकर अपने नजर-ए-इनायत दिखाई है, उससे आने वाले दिनों में इस हलके के समीकरण भी बेहद बदल सकते हैं। कुल मिलाकर पार्षदों का एक तबका जहां हाईकमान के फैसले पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं एक तबका ऐसा भी जो तेल और तेल की धार को देखकर आगे की रणनीति को तय करेगा।