फसलों में बरती जाने वाली नाइट्रोजन और यूरिया से पंजाबियों की सेहत को खतरा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Mar, 2018 08:47 AM

nitrogen and urea effect for punjabis health

एक तो वैसे ही वायु प्रदूषण ने पंजाब के वातावरण को प्रभावित किया हुआ है वहीं अब सैंटर ऑफ  साइंस एंड एन्वायरनमैंट नामक संस्था की रिपोर्ट ने वातावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है। इस संस्था की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में किसानों द्वारा चावल और...

जालंधर (बुलंद): एक तो वैसे ही वायु प्रदूषण ने पंजाब के वातावरण को प्रभावित किया हुआ है वहीं अब सैंटर ऑफ  साइंस एंड एन्वायरनमैंट नामक संस्था की रिपोर्ट ने वातावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है। इस संस्था की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में किसानों द्वारा चावल और गेहूं की फसलों में नाइट्रोजन व यूरिया का प्रयोग अधिकतम किया जा रहा है जिससे पंजाबियों की सेहत और पंजाब के वातावरण पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रोजन प्रदूषण से लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और जलवायु परिवर्तन पर भी असर होता है। उक्त संस्था ने यह रिपोर्ट 10 साल के अध्ययन के आधार पर जारी की है। इसमें कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे रा’यों में किसान भारी मात्रा में यूरिया व पेस्टीसाइड्स का प्रयोग अपनी फसलों के लिए करते हैं। इनमें से अधिकतर यूरिया का चावल और गेहूं की फसलों के लिए प्रयोग होता है जिससे जमीन उपजाऊ शक्ति पर तो असर पड़ता ही है बल्कि इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। 

किसानों की मिट्टी के सैंपल लेकर उन्हें कार्ड जारी किए जाएंगे : खेतीबाड़ी अधिकारी 
इस बारे खेतीबाड़ी अधिकारी डा. जसविंद्र सिंह का कहना है कि किसान पेस्टीसाइड्स का प्रयोग फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए तो करते हैं पर इसका बुरा प्रभाव पडऩा लाजमी है। दोआबा क्षेत्र की मिट्टी चिकनी है जहां पेस्टीसाइड्स का असर जमीन के नीचे पीने वाले पानी तक नहीं पहुंच पाता पर मालवा क्षेत्र में जो मिट्टी है, वह सैंडीलूम मिट्टी है। यहां अगर नाइट्रोजन युक्त यूरिया का प्रयोग किया जाए तो उसका दुष्प्रभाव भारी मात्रा में सामने आ सकता है। मालवा की मिट्टी कपास और गेहूं के लिए ठीक है पर मुनाफे के चक्कर में किसान कपास वाली जमीन में चावलों की खेती करने लगे हैं। उसमें भारी मात्रा में यूरिया का प्रयोग किया जा रहा है। यूरिया और नाइट्रोजन के दुष्प्रभावी तत्व रिसते हुए नीचे पीने वाले पानी में जा मिलते हैं। वही पानी जब आम लोगों को पीने के लिए मिलता है तो लोगों में कई प्रकार की बीमारियां फैलने की शंका बन जाती है। इस बारे लोगों को बहुत जागरूक किया जा रहा है कि वे यूरिया और पेस्टीसाइड का प्रयोग कम करें। डा. जसविंद्र सिंह ने बताया कि पंजाब सरकार जल्द ही सॉयल हैल्थ कार्ड स्कीम शुरू करने जा रही है जिसके तहत किसानों की मिट्टी के सैंपल लेकर उन्हें कार्ड जारी किए जाएंगे, जिनमें उनके खेतों की मिट्टी में कौन-कौन से तत्व हैं, की पूरी जानकारी होगी। उसके अनुसार ही फिर किसानों को बताया जाएगा कि वे कौन-सी फसलों की खेती करें और कौन-कौन से पेस्टीसाइड्स प्रयोग करें। 

पिछले कुछ दशकों में यूरिया का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा
जानकारी के अनुसार भारत में पिछले कुछ दशकों में यूरिया का इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है। 1960 के दशक में यह 10 प्रतिशत प्रयोग में लाया जाता था, वहीं 2015-16 में नाइट्रोजन फर्टीलाइजर का इस्तेमाल खेतीबाड़ी के लिए 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय किसान अपने एक खेत में 200 किलो यूरिया प्रयोग में ला रहे हैं। यूरिया के कारण लोगों की जिंदगी बर्बाद हो रही है।

कृषि विभाग लोगों को करें जागरूक : कक्कड़ 
इस संबंध में पंजाब प्रदूषण बोर्ड के एन्वायरनमैंट अधिकारी अरुण कक्कड़ ने बताया कि किसान अपनी फसलों के लिए यूरिया और पेस्टीसाइड्स का प्रयोग करके फसलों की पैदावार बढ़ाने की कोशिश करते हैं परंतु इसका दुष्प्रभाव किसानी के लिए प्रयोग की जाने वाली जमीनों पर हो रहा है और फल-सब्जियां खाने वाले आम लोगों पर भी, किसानों को जैविक खादों का प्रयोग करना चाहिए। पैस्टीसाइड्ज में कई ऐसे तत्व होते हैं जो सब्जियों और फलों की पैदावार तो बढ़ा देते हैं पर उनको खाने वालों की सेहत पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। कृषि विभाग को चाहिए कि वह लोगों को इस बारे जागरूक करें।  

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