Edited By Updated: 29 Sep, 2016 10:27 AM
शहर के माडल टाऊन में दिल दहलाने वाले हांडा डेयरी के मालिक पृथ्वी पाल की पत्नी सुजाता हांडा व उनके नौकर ..
जालंधर (शौरी): शहर के माडल टाऊन में दिल दहलाने वाले हांडा डेयरी के मालिक पृथ्वी पाल की पत्नी सुजाता हांडा व उनके नौकर हरीश की हत्या के मामले में नया मोड़ आ गया है। पुलिस की कार्रवाई से असंतुष्ट मृतका सुजाता के परिजनों ने इस केस की सी.बी.आई. जांच की मांग की है।
परिजनों की मानें तो पुलिस केस में शामिल 2 युवकों को काबू नहीं कर रही है, शायद पुलिस पर किसी प्रकार का प्रैशर है। इस बाबत जानकारी देते हुए मृतका के बेटे जतिन हांडा ने बताया कि वारदात वाले दिन जैसे ही वह घर पहुंचा तो लोगों की भीड़ थी। भीड़ में शामिल उसके एक दोस्त ने उसे अपना मोबाइल फोन दिखाया, जिसमें उसने वीडियो तैयार कर रखी थी, जिसमें उसकी मां व नौकर की चीखों की आवाजें सुनाई दे रही थीं। बाद में वह गेट फांद कर भीतर आया तो इनोवा कार में एक युवक सवार था, उसे देख वह भीतर भागा। जतिन के मुताबिक उसने देखा कि सीढिय़ों में 4 युवक थे। जतिन ने अनुसार उसे देख चारों सीढिय़ों के रास्ते छत पर पहुंचे और पड़ोसियों की छतों से होते हुए फरार हो गए।
सेफ यदि 2 युवक उठा दें तो केस वापस ले लेंगे
वहीं पंजाब केसरी टीम को जानकारी देते हुए पीड़ित जतिन व उसके परिवार का कहना है कि पुलिस की कहानी है कि मलकीत व अजय उर्फ अंकुश सेफ फर्श पर घसीट रहे थे। तो फर्श पर निशान क्यों नहीं पड़े?। इसके साथ वह शारीरिक तौर पर भी इतने फिट नहीं हैं कि सेफ उठा सकें। सेफ का वजन 2 क्विंटल के करीब है, जिसे 4 लोग भी बड़ी मुश्किल से उठा सकते हैं। यदि मलकीत व अजय उनके सामने सेफ घसीट कर कार में रख दें तो वह केस वापस ले लेंगे। पीड़ित परिवार का कहना है कि काबू चारों युवकों से लूट का पूरा माल बरामद क्यों नहीं हुआ।
108 की गाड़ी वाले ने 500 रुपए लिए
पीड़ित जतिन ने बताया कि वह अपनी मां को खून से सनी हालत में पड़ोसी की कार में बिठाकर अर्बन एस्टेट स्थित एक अस्पताल लेकर पहुंचा लेकिन डाक्टरों को जैसे ही पता चला कि मर्डर केस है तो उन्होंने कोई उपचार नहीं किया। इतना ही नहीं उसने खुद दोस्तों की मदद से स्टैचर उठाया और मां को बिठाया, लेकिन डाक्टर ने सिविल अस्पताल जाने की सलाह दी। इसके बाद पास ही खड़ी 108 की गाड़ी वाले को उसने मां को गाड़ी में बिठाने को कहा तो उसने 500 रुपए रिश्वत ली और उसे एक अन्य प्राइवेट अस्पताल ले गया। गाड़ी के ई.एम.टी. के कहने पर उसने डाक्टर को कहा कि उसकी मां सड़क हादसे में घायल हुई है तो डाक्टर ने उपचार शुरू किया। यदि वह डाक्टर को कहता कि उसकी मां पर हमला हुआ है तो उसकी मां का उपचार ही नहीं होता।
जतिन हांडा ने बताया कि एक तरफ तो हाईकोर्ट के आदेश हैं कि हमले में घायलों का उपचार प्राइवेट अस्पताल वाले कर सकते हैं लेकिन डाक्टर आदेशों की पालना क्यों नहीं करते। यदि उसकी मां का समय पर उपचार हो जाता तो उसकी मां की जान बच सकती थी। पीड़ित परिवार की मांग है कि इस केस को डी.जी.पी. खुद देखें, ताकि केस में रहते बाकी आरोपी भी काबू हो सकें, क्योंकि उन्हें डर है कि बाहर घूम रहे आरोपी उन पर दोबारा हमला कर सकते हैं। यदि मामले की जांच सी.बी.आई. को दी जाए तो पूरा मामला साफ हो सकता है।