Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 09:59 AM
पंजाब में मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा कल घोषित नई आबकारी नीति के बाद शराब कारोबार पर बड़े ठेकेदारों का एकाधिकार टूटने जा रहा है तथा नए ठेकेदारों ने शराब कारोबार में प्रवेश करने का फैसला कर लिया है। अभी तक...
जालंधर (धवन): पंजाब में मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा कल घोषित नई आबकारी नीति के बाद शराब कारोबार पर बड़े ठेकेदारों का एकाधिकार टूटने जा रहा है तथा नए ठेकेदारों ने शराब कारोबार में प्रवेश करने का फैसला कर लिया है। अभी तक राज्य में कुल 84 शराब के ग्रुप काम कर रहे थे परन्तु नई नीति के बाद इन ग्रुपों की गिनती बढ़ कर 700 हो जाएगी। इस तरह 616 नए ग्रुप शराब कारोबार में प्रवेश करने जा रहे हैं।
शराब का कारोबार करने वाले ठेकेदारों ने नई आबकारी नीति की सराहना करते हुए कहा कि लगभग 10 वर्षों के अंतराल के बाद शराब कारोबार में सियासी नेताओं की दखलअंदाजी बंद हो जाएगी, क्योंकि 10 वर्षों तक लगातार शराब माफिया इस कारोबार में काम करता रहा, जिसने नए ठेकेदारों को कारोबार में प्रवेश करने नहीं दिया। ठेकेदारों ने बताया कि कै. अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में शराब कारोबार को एकाधिकार से मुक्त करने का जो वायदा किया था उस पर वास्तव में अब अमल हुआ है। पिछली आबकारी नीति में भी छोटे शराब कारोबारी इस व्यापार में प्रवेश नहीं कर सके थे परन्तु अब पहली बार छोटे ठेकेदारों को काम मिल सकेगा।
उन्होंने कहा कि ऐसी आबकारी नीति राजस्थान सहित देश के चंद ही राज्यों में प्रचलित है। यद्यपि राज्य में पिछले कुछ समय से शराब कार्पोरेशन बनाने बारे भी विचार हो रहा था परन्तु वह अभी अगले वर्ष तक के लिए टाल दिया गया है। ठेकेदारों ने कहा कि अब 5-5 करोड़ के जो छोटे ग्रुप बनाए गए हैं उससे अनेक ठेकेदार कारोबार में आने के लिए तैयार बैठे हैं। इससे पहले इन ग्रुपों में ठेकेदार न्यूनतम पूंजी निवेश 40 करोड़ रुपए का करते थे तथा अधिकतम पूंजी निवेश की राशि 100 से 150 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती थी। 5-5 करोड़ की राशि का प्रबंध लोग आसानी से कर नया रोजगार भी हासिल कर लेंगे। शराब तो सस्ती होगी ही परन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि लॉटरी प्रणाली के लिए आवेदन करने के लिए न्यूनतम फीस भी सरकार ने इस बार मात्र 18000 रुपए रखी है जबकि इससे पहले यह फीस 35000 रुपए से लेकर 75000 रुपए तक थी। सरकार ने अपने राजस्व में 8 से 10 प्रतिशत की बढ़ौतरी का लक्ष्य रखा है।