Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jan, 2018 09:29 AM
0 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार से 10 महीने के भीतर लोगों का मोह भंग होने लगा है। पंजाब की जनता ने अकाली-भाजपा को नकारते हुए कांग्रेस को एक बड़ा बहुमत दिया था, मगर कैप्टन अमरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनते ही सत्ता में ऐसे...
जालंधर (रविंदर शर्मा): 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार से 10 महीने के भीतर लोगों का मोह भंग होने लगा है। पंजाब की जनता ने अकाली-भाजपा को नकारते हुए कांग्रेस को एक बड़ा बहुमत दिया था, मगर कैप्टन अमरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनते ही सत्ता में ऐसे समाए कि वह अपना कामकाज ही भूल गए। कैप्टन ने अपना सारा कामकाज अपने दरबारियों पर छोड़ रखा है, जिसका खामियाजा अब कैप्टन सरकार को भुगतना पड़ रहा है। कैप्टन के इन पर ज्यादा विश्वास करने और खुद कामकाज से दूर रहने के कारण सरकार का सारा कामकाज गलत दिशा की तरफ जाने लगा है। यही कारण है कि दरबारी बेलगाम हो चुके हैं और उनके कारण सरकार की छवि लगातार जनता के बीच धूमिल हो रही है।
कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने सत्ता संभालते ही अपनी कैबिनेट का आकार बेहद छोटा रखा। कारण बताया कि राज्य आॢथक संकट से गुजर रहा है और अभी सरकार पर ज्यादा बोझ नहीं डाल सकते। हालांकि कैप्टन के इस फैसले से पार्टी के ही विधायक खफा नजर आए। इसके उलट कैप्टन ने अपनी खासमखास जुंडली को ज्यादा तरजीह दी। 10 के करीब ओ.एस.डी. लगा दिए, कई बेफिजूल सलाहकार नियुक्त कर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाने का काम कर दिया। अब 10 महीने में कैप्टन के ये फैसले जनता पर भारी पडऩे लगे हैं। 40 से ज्यादा अहम विभाग अकेले कैप्टन ने अपने पास रखे हुए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इनमें से कई विभाग तो रोजाना कामकाज की समीक्षा मांगते हैं, मगर हकीकत यह है कि कैप्टन 10 महीनों में इनकी एक बार भी समीक्षा नहीं कर पाए हैं। अब नई बात यह उभर कर सामने आ रही है कि कैप्टन सैक्रेटिएट स्थित अपने ऑफिस में पैर भी नहीं धरते हैं। |
सूत्रों की मानें तो सरकार बनने के बाद कैप्टन वहां फोटो सैशन करवाने आए थे या फिर जब कभी कैबिनेट की मीटिंग होती है तो वह सैक्रेटिएट में दिखाई देते हैं। इसके अलावा अपने सारे कामकाज व अधिकारियों के साथ मीटिंग वह अपने चंडीगढ़ स्थित सी.एम. आवास से ही निपटाते हैं। कैप्टन के लगातार निष्क्रिय रहने से फाइलों के अंबार लगातार लंबे होते जा रहे हैं। कई अहम फाइलें दबी हुई हैं। कैप्टन के सैक्रेटिएट न आने से अन्य कैबिनेट मंत्री भी सैक्रेटिएट से दूरी बनाकर चल रहे हैं। मुख्यमंत्री व कैबिनेट मंत्रियों के सैक्रेटिएट में न बैठने से जनता का कोई कामकाज नहीं हो रहा और जनता का भी सैक्रेटिएट से मोह भंग होने लगा है। कहा जा सकता है कि सैक्रेटिएट में पूरी तरह से बाबुओं का राज है और वहां का सारा कामकाज भी बाबुओं के हवाले ही है। पंजाब के अधिकांश विभागों में भ्रष्टाचार जोरों पर है और सरकार की कारगुजारी जीरो हो गई है। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के सामने अब सरकार का अक्स सुधारने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है क्योंकि ताजा घटनाक्रम और संकट को दरबारियों की देन ही माना जा रहा है। अब तो सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी दरबारियों की बेफिजूल की गतिविधियों पर चर्चा करनी शुरू कर दी है।
विवादित सलाहकार बना गले की हड्डी
सरकार में एक काफी हद तक स्पष्ट हो चुका है कि मुख्यमंत्री के साथ तैनात एक विवादित किस्म के सलाहकार ने विजीलैंस ब्यूरो और ट्रांसपोर्ट विभाग में पिछले दरवाजे से एंट्री संभाली हुई है। विजीलैंस की ओर से लिए गए विवादित फैसलों के पीछे भी इसी सलाहकार का हाथ माना जा रहा है। चर्चा है कि इसी सलाहकार के दखल कारण ही नई ट्रांसपोर्ट पॉलिसी भी लागू नहीं हो रही। ट्रांसपोर्ट विभाग के विवादों में घिरे पूर्व अधिकारी हरमेल सिंह के बेटे को भी इसी सलाहकार की मेहरबानी से अनियमित एंट्री मिली हुई है। हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी ट्रांसपोर्ट पॉलिसी लागू न होने के कारण यह भी माना जा रहा है कि कैप्टन सरकार राज्य में सबसे से बड़े ट्रांसपोर्टर के तौर पर जाने जाते बादल परिवार को नाराज करने के मूड में नहीं है।