Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jan, 2018 03:03 PM
पंजाब सरकार की बात करें तो इसके कामकाज ही निराले हैं। शायद पंजाब के मुख्यमंत्री को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ज्यादा पर्सनल प्रक्रिया पर ज्यादा भरोसा है। तभी तो सरकार बने हुए चाहे 9 महीने का समय हो गया हो, मगर जनता का दिल जीत कर आने वाले नेताओं के हाथ...
जालंधर(रविंदर शर्मा): पंजाब सरकार की बात करें तो इसके कामकाज ही निराले हैं। शायद पंजाब के मुख्यमंत्री को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ज्यादा पर्सनल प्रक्रिया पर ज्यादा भरोसा है। तभी तो सरकार बने हुए चाहे 9 महीने का समय हो गया हो, मगर जनता का दिल जीत कर आने वाले नेताओं के हाथ खाली हैं।मौज तो बस उनकी है जो कैप्टन के गुणगान गाते व जी हजूरी करते नहीं थकते थे। विधायकों से ज्यादा विश्वास सरकार को अपने पर्सनल सैक्रेटरी, ब्यूरोक्रेसी व ओ.एस.डी. पर है। तभी तो पंजाब ऐसा पहला राज्य है, जहां कैबिनेट रैंक मंत्रियों से ज्यादा मुख्यमंत्री की पसर्नल फौज है, जो राज्य का कामकाज देख रही है।
कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेसी नेताओं व वर्करों ने 10 साल तक अत्याचार सहन किए। अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ धरनों से लेकर झूठे परचे तक झेलने में सबसे आगे पार्टी का वर्कर व निचले स्तर का नेता ही रहा। इस उम्मीद में कि कभी तो उनकी सरकार आएगी और उनके दिन भी वापस लौटेंगे। इसी उम्मीद में वर्करों व नेताओं ने पार्टी को जीत दिलाने में दिन-रात एक कर दिया। वर्करों व नेताओं की मेहनत ही थी कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। वर्करों को उम्मीद थी कि उनके कामकाज चलने लगेंगे और नेताओं को उम्मीद थी कि सरकार उनकी है तो उनकी राजनीति भी साथ चमकेगी। मगर अभी तक 9 महीने में कैप्टन ने वर्करों व नेताओं को पूरी तरह से निराश किया है। न तो वर्करों की कहीं सुनवाई हो रही है, न ही उन्हें कहीं रोजगार व व्यापार मिल रहा है। रही बात नेताओं की तो उनके दिन पहले से भी ज्यादा बुरे हो गए हैं।अपने समय के साथ-साथ यह नेता अपनी जमा पूंजी तक पार्टी के लिए बर्बाद कर चुके हैं, इस उम्मीद में कि कभी तो उनकी भी सुनी जाएगी। मगर पार्टी में तो अभी विधायकों तक की नहीं सुनी जा रही।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि कैप्टन ने अपनी कैबिनेट में अभी तक सिर्फ 9 मंत्रियों को ही शामिल किया है, जबकि कानून के मुताबिक 17 कैबिनेट व राज्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। तीन से चार बार जीतने वाले विधायकों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि अभी खजाना खाली है और बड़ा कैबिनेट बनाकर सरकार पर बोझ नहीं डाला जा सकता। मगर दूसरी तरफ हकीकत देखें तो कैबिनेट से ज्यादा बड़ी कैप्टन की पर्सनल फौज है। इसमें कैप्टन के पसर्नल सैक्रेटरी, प्रैस सैक्रेटरी, सलाहकार से लेकर ओ.एस.डी. शामिल हैं। टी.एस. शेरगिल, भरत इंदर सिंह चाहल, रवीन ठुकराल व खूबी राम के तौर पर चार-चार तो सलाहकार ही काम कर रहे हैं। 10 के करीब ओ.एस.डी. की लंबी चौड़ी फौज है। ऐसे लगता है कि कैप्टन को जनता का दिल जीत कर आने वाले अपने विधायकों की बजाय अपनी पसर्नल फौज पर ज्यादा विश्वास है तभी तो सी.एम. हाऊस से लेकर पूरी सरकार में विधायकों से ज्यादा कैप्टन की फौज की चलती है। इसके अलावा सी.एम. आफिस से लेकर जिला स्तर पर पूरी तरह से ब्यूरोक्रेसी का ही राज है। ऐसे लग रहा है जैसे पंजाब सरकार को विधायक नहीं, बल्कि ब्यूरोक्रेसी चला रही हो। मगर अब धीरे-धीरे विधायकों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है और खुद की एडजस्टमैंट न होने से निराश विधायक कभी भी बगावत का झंडा कैप्टन के खिलाफ उठा सकते हैं।a