Edited By Updated: 27 Sep, 2015 01:57 AM
उत्तरी भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मेला शुरू हो चुका है। संगतें बहुत ही धूम-धाम और श्रद्धा के ..
जालंधरः उत्तरी भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मेला शुरू हो चुका है। संगतें बहुत ही धूम-धाम और श्रद्धा के साथ ढोल-नगाड़ों के साथ बाबा जी के दरबार पर मन्नत लेकर आ रही हैं।
दरबार में हर तरफ बाबा जी के जयकारे सुनाई दे रहे हैं और संगतें माथा टेककर बाबा जी का आशीर्वाद ले रही हैं। सोढल मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। आओं आज हम आपको बताते हैं कि यह मेला कब और कैसे शुरू हुआ।
कब लगता है सोढल का मेला
यह मेला अनंत चौदस के दिन बाबा सोढल की याद में मनाया जाता है। 15 लाख से अधिक श्रद्धालू इस मेले में आते हैं। सभी धर्मों के लोग जिनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं, बैंडबाजों के साथ मंदिर में दर्शन करने के लिए और बाबा जी का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।
सोढल मंदिर की कहानी
इसके बारे में कहा जाता है कि प्राचीन समय में स्त्रियां कपड़े धोने के लिए तालाब पर जाया करती थीं। एक दिन सोढल नामक बालक की माता तालाब पर कपड़े धोने के लिए उसे साथ लेकर गई। तभी समीप ही बालक वहां शरारतें करने लगा और उसने मिट्टी की डलियां बना कर माता के ऊपर फैंकनी शुरू कर दीं।
माता ने शरारतें करते बालक को गुस्से में कहा, जा गर्क जा। बालक ने माता को यही शब्द दोहराने के लिए कहा। माता से तीन बार यही कहलवा कर माता की आज्ञा पूरी करने के लिए उसने तालाब में छलांग लगा दी। यह देख कर बालक सोढल की माता रोने-चिल्लाने लगी।
रोने की आवाजें सुन कर भीड़ एकत्रित हो गई। लोगों द्वारा तालाब में ढूंढने पर भी बालक नहीं मिला। तभी बालक ने सर्प रूप में तालाब में से दर्शन दिए और कहा अब मेरा इस संसार से कोई संबंध नहीं है।
बाबा सोढल जी के आखिरी बोल
बालक से सांप के रूप में तालाब से प्रक्ट हुए बाबा सोढल जी ने कहा कि अब मेरा यही रूप होगा और मेरी पूजा इसी रूप में चड्ढा और आनंद परिवारों द्वारा मट्ठियों से की जाएगी जिसे ‘टोपा’ कहा जाता है। मैं चड्ढा परिवार का सदस्य हूं इसलिए मेरा टोपा सवा दो सेर और परिवार के लड़कों का आधा सेर ‘टोपा’ बना कर पूजा जाएगा।
बाबा जी ने कहा ‘टोपा’ बनाने से पहले उसको कुंवारे ब्राह्मण से घर के प्रत्येक लड़के के नाम पर तोला जाए और उन्होंने कहा कि यह ‘टोपा’ केवल चड्ढा परिवार के सदस्य ही खा सकते हैं। यहां तक कि परिवार का दामाद भी इसे नहीं खा सकता। बाबा जी ने कहा था कि अगर घर में कोई अनहोनी घटना हो जाए तब भी उस परिवार को मेरी पूजा करनी होगी। ऐसा न होने पर मैं उन्हें सर्प के रूप में दर्शन दूंगा और याद दिलाऊंगा। यह कह कर बाबा जी तालाब में समा गए। तभी से अनंत चौदस के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए आते हैं।