योगी-अमरेन्द्र की धार से हरियाणा की मंडियों पर चली ‘कैंची’

Edited By Updated: 21 Apr, 2017 03:43 PM

scissors on the mandis of haryana

हरियाणा की मंडियों में इस बार पंजाब और उत्तर प्रदेश का गेहूं बिकने के लिए नहीं आया।

चंडीगढ़ (दीपक बंसल):हरियाणा की मंडियों में इस बार पंजाब और उत्तर प्रदेश का गेहूं बिकने के लिए नहीं आया। अब खरीद एजैंसियों के लिए निर्धारित लक्ष्य पूरा करना चिंता का विषय बना हुआ है। पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान इस बार अपने ही राज्यों में गेहूं बेच रहे हैं। इसके पीछे दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की ओर से गेहूं खरीद के लिए उठाए कदमों और समय पर पेमैंट को बड़ा कारण माना जा रहा है। 

गौरतलब है कि पंजाब से हरियाणा में लगभग 5 लाख मीट्रिक टन जबकि उत्तर प्रदेश से 10 से 15 लाख मीट्रिक टन गेहूं बिकने के लिए आता था, लेकिन इस बार यह गेहूं हरियाणा न जा कर अपने ही राज्यों की मंडियों में बिक रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अरेन्द्र के प्रयासों के चलते केंद्र की ओर से अब सी.सी. लिमिट बन गई और किसानों को समय पर गेहूं खरीद की पेमैंट मिल रही है जिसके चलते वह हरियाणा की तरफ रुख ही नहीं कर रहे।

UP:एम.एस.पी. के अलावा परिवहन खर्च भी
हरियाणा में हर वर्ष यू.पी. से 10 से 15 लाख मीट्रिक टन गेहूं बिकने के लिए आता था। हरियाणा के जिलों सोनीपत, पानीपत, करनाल, फरीदाबाद तथा पलवल में इस बार यू.पी. का गेहूं बिकने नहीं आया, क्योंकि यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे कि यहां का गेहूं अन्य प्रदेशों में नहीं बिकना चाहिए। यू.पी. सरकार ने यह फैसला भी लिया कि किसानों को एम.एस.पी. के अतिरिक्त परिवहन खर्च भी दिया जाएगा। 10 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को मंडियों में गेहूं लाने का किराया दिया जाएगा। इसका असर यह रहा कि जो किसान नाकों को पार करके हरियाणा में गेहूं बेचने आता था, इस बार वह अपने प्रदेश में गेहूं बेच रहा है। पलवल तथा करनाल में सबसे ज्यादा यू्.पी. का गेहूं बिकने आता था लेकिन इस बार हरियाणा की मंडियां यू्.पी. के गेहूं की बाट जोह रही है।

हरियाणा को नहीं लगाने पड़े सीमाओं पर नाके
यू.पी. व पंजाब की गेहूं को हरियाणा में आने से रोकने के लिए पहले दोनों सीमाओं पर पुलिस नाके लगते थे। इस बार हरियाणा को एक भी नाका नहीं लगाना पड़ा। नाकों के बावजूद भी मंडियों में लाखों मीट्रिक टन गेहूं आता था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि नाकों पर क्या खेल चलता होगा? ऐसे मामले भी आते थे कि हरियाणा, यू.पी. और पंजाब के व्यापारियों में मिलीभगत का खेल होता था जिससे पड़ोसी राज्यों के व्यापारी फसल बेच जाते थे। इस बार ऐसे मामलों से भी राहत मिल गई है। वहीं, पड़ोसी राज्यों के किसान की गेहूं यहां आती जरूर थी, लेकिन पूरा भाव नहीं मिलता था क्योंकि व्यापारी की मार्फत अगर गेहूं आई है तो वह किसान को पूरा भाव क्यों देगा? दूसरा किसान यहां आया है तो मजबूरी में कम दाम पर बेचना पड़ता था। अब जब अपने ही राज्य में फसल बेच रहे हैं तो ऐसी लूट पर भी लगाम लगी है।

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