कारगिल शहीदों के परिवारों में आज भी जिंदा है देश पर मर-मिटने का जज्बा

Edited By Updated: 26 Jul, 2016 09:58 AM

kargil vijay diwas

कारगिल युद्ध को समाप्त हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं, मगर विजय दिवस आते ही शहीदों के परिजनों की आंखें बरबस ही भर

दीनानगर (कपूर): कारगिल युद्ध को समाप्त हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं, मगर विजय दिवस आते ही शहीदों के परिजनों की आंखें बरबस ही भर आती हैं, ऐसे ही परिवारों में दीनानगर क्षेत्र के गांव भटोआ के शहीद सिपाही मेजर सिंह का परिवार भी शामिल है। भाग्य की बिडम्बना देखिए कि शहीद मेजर सिंह की शहादत के 4 महीने बाद उसकी पत्नी ने एक बेटे के जन्म दिया। 

 

घर के चिराग को देखने की हसरत उसकी शहादत के साथ ही दफन होकर रह गई। आज उसका बेटा गुरप्रीत सिंह 17 वर्ष का हो चुका है, लेकिन उसकी रगों में दौड़ता शहीद पिता का खून देश पर मर-मिटने का हौसला बुलंद किए हुए है तथा वह पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए अपने अंदर सेना में भर्ती होने का सपना पाले हुए है। विजय दिवस की पूर्व संध्या पर शहीद की माता रखवन्त कौर ने नम आंखों से बताया कि उनका बेटा 1994 में 8 सिख यूनिट में भर्ती हुआ था। कारगिल युद्ध में उनकी यूनिट मामून कैंट पठानकोट में तैनात थी। सबसे पहले इनकी यूनिट को ही कारगिल भेजा गया था। कारगिल जाते समय मेजर सिंह 1 घंटे छुट्टी लेकर घर में बीमार दादी अमर कौर को देखने आया था। उसके पहुंचने के बाद ही दादी की मौत हो गई, लेकिन मेजर सिंह ने दादी को अर्थी को कंधा देने की हसरत दिल में दबाकर कत्र्तव्यपरायणता को प्राथमिकता दी तथा दादी के अन्तिम संस्कार में शामिल हुए बिना ही कारगिल रवाना हो गया। उनकी यूनिट को टाइगर हिल को फतेह करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

 

हजारों फुट की कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए जब वे चोटी पर पहुंचे तो पाक सेना ने इनकी सैन्य टुकड़ी पर गोलियों की बौछार कर दी। मेजर सिंह ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन एक गोली उनके सीने को भेदते हुए निकल गई, जिससे उनका बेटा शहीद हो गया। उन्होंने बताया कि बेटे के अन्तिम संस्कार पर सरकार ने गांव में स्टेडियम, लाईब्रेरी व श्मशानघाट तक पक्की सड़क बनाने की घोषणा की थी जोकि बेटे की शहादत के 17 वर्षों बाद भी पूरी नहीं हो सकी। शहीद की माता रखवन्त कौर ने आगे बताया कि उनको अपने बेटे की शहादत पर गर्व है क्योंकि उनके बेटे की शहादत की मशाल गांव के युवाओं के दिल में ऐसी प्रज्वलित हुई कि आज  उनके गांव के 58 के करीब युवक भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका पोता गुरप्रीत भी अपने शहीद पिता की यूनिट 8 सिख में भर्ती होना चाहता है क्योंकि पिता की शहादत अब उसके लिए इबादत बन चुकी है।  

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