Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 10:52 AM
जिला गुरदासपुर (पुराना जिला) एक ऐसा जिला है जो देश की सुरक्षा संबंधी बहुत ही महत्व रखता है और जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत के साथ जोड़े रखने के लिए जिला गुरदासपुर ही एकमात्र ऐसा जिला है जिसमें से होकर जम्मू-कश्मीर राज्य में जाना पड़ता है।
गुरदासपुर (विनोद): जिला गुरदासपुर (पुराना जिला) एक ऐसा जिला है जो देश की सुरक्षा संबंधी बहुत ही महत्व रखता है और जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत के साथ जोड़े रखने के लिए जिला गुरदासपुर ही एकमात्र ऐसा जिला है जिसमें से होकर जम्मू-कश्मीर राज्य में जाना पड़ता है।
जिला गुरदासपुर (पुराना जिला) तथा जिला पठानकोट से संबंधित ऐतिहासिक स्थान
जिला गुरदासपुर इस मामले में बहुत ही अमीर विरसा रखता है। जिला गुरदासपुर में अकबर बादशाह की ताजपोशी वाला तख्त, डेरा बाबा नानक में गुरुद्वारा चोला साहिब, महाकलेश्वर मंदिर कलानौर जिसे शिव मंदिर भी कहा जाता है, गुरुद्वारा बाठ साहिब, बटाला-जालंधर रोड पर अचलेश्वर मंदिर व गुरुद्वारा कंद साहिब बटाला, ध्यानपुर में बावा लाल मंदिर, पिण्डोरी धाम, गुरुद्वारा बाबा बंदा बहादुर, काहनूवान के पास गुरुद्वारा घल्लूघारा, शाहपुर कंडी का किला, कलानौर के पास अकबर का ताजपोशी स्थल, पठानकोट के पास मुकतेश्वर गुफाएं, दीनानगर के पास महाराजा रणजीत सिंह की बारादरी, श्री दरबार साहिब डेरा बाबा नानक, शेर शाह का मकबरा, गुरदासपुर का झूलना महल प्रमुख है। कहा जाता है कि शाहपुर कंडी के पास जो मुकतेश्वर गुफाएं हैं उनका संबंध महाभारत काल से है।
पुरातत्व विभाग के अधीन ऐतिहासिक स्थान
जहां तक पुरातत्व विभाग का संबंध है जिला गुरदासपुर में यह विभाग केवल नाम का ही है। इस विभाग के अधीन जिला गुरदासपुर के केवल 2 प्रमुख स्थान हैं जिसमें एक कलानौर का अकबर बादशाह की ताजपोशी स्थल व बटाला में शेर शाह का मकबरा शामिल है। जबकि अन्य सभी धार्मिक स्थानों के रख-रखाव के लिए सभी स्थानों की अपनी-अपनी कमेटियां हैं। इस विभाग का पंजाब से संबंधित कार्यालय चंडीगढ़ में होने के कारण यह विभाग जिला गुरदासपुर में कोई विशेष महत्व नहीं रखता।
फिर इस विभाग के पास मात्र 2 स्थान होने के कारण विभाग की दिलचस्पी भी कम दिखाई देती है। कलानौर के पास अकबर बादशाह की ताजपोशी वाला तख्त इस समय जिला गुरदासपुर में विशेष महत्व रखता है। जो भी विदेशी मुस्लिम नागरिक या अन्य पर्यटक जिला गुरदासपुर में आता है तो वह इस तख्त को देखने के लिए जरूर जाता है परंतु जब पर्यटक इस स्थान पर पहुंचते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगती है क्योंकि इस स्थान की देखरेख में विभाग बिल्कुल अयोग्य प्रमाणित हुआ है।
इस स्थान पर एक बोर्ड लगा कर विभाग ने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रखी है जबकि इस तख्त के चारों ओर सफाई आदि का भी विशेष प्रबंध नहीं है। बेशक इस तख्त के साथ काफी जमीन भी है जो ठेके पर विभाग ने दे रखी है। उस राशि को भी यदि इस तख्त पर ही खर्च किया जाए तो काफी सुधार हो सकता है। इसी तरह पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाला दूसरा स्थल बटाला का शेर शाह का मकबरा है जो बटाला-जालंधर रोड पर है। इस स्थान की हालत देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग कितना सक्रिय है।
1849 में अस्तित्व में आया था गुरदासपुर जिला
1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय कुछ दिन के लिए जिला गुरदासपुर को पाकिस्तान का हिस्सा घोषित कर दिया गया था परंतु तब देश के कुछ प्रमुख बुद्धिजीवी लोगों ने इस संबंधी भारत सरकार को सतर्क कर दिया कि यदि जिला गुरदासपुर को पाकिस्तान का हिस्सा रहने दिया जाता है तो निश्चित रूप में जम्मू-कश्मीर राज्य भी हमारे हाथ से निकल जाएगा। भारत-पाकिस्तान विभाजन के कुछ दिन बाद शकरगढ़ तहसील को छोड़ कर बाकि सारा जिला गुरदासपुर पुन: भारत के साथ जोड़ा गया। यह जिला शुरू से ही धार्मिक व ऐतिहासिक स्थानों के कारण बहुत अमीर जिला माना जाता है।
यदि इस जिले के इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि यह जिला 1849 में अस्तित्व में आया परंतु तब इसका नाम अदीनानगर था और अब जो दीनानगर शहर है वह इसका जिला मुख्यालय था परंतु 1849 में ही अदीनानगर की बजाय अंग्रेजों ने बटाला शहर को जिला मुख्यालय बना दिया और लगभग 3 साल बटाला जिला मुख्यालय बना रहा पंरतु बटाला व आसपास के इलाकों में बाढ़ बहुत आती थी जिस कारण अंग्रेजों ने 1 मई 1852 को गुरदासपुर को जिला मुख्यालय बना दिया और तब से यह जिला मुख्यालय चलता आ रहा है।
जिला गुरदासपुर के इतिहास संबंधी यदि जानकारी इकट्ठी की तो इसका कोई स्पष्ट इतिहास नहीं मिलता परंतु कहा जाता है कि किसी गुरिया जी ने यह जिला बसाया था और उस गुरिया जी के कारण इसे जिला गुरदासपुर का नाम दिया गया। जिला गुरदासपुर में कुछ ऐतिहासिक व प्रशासनिक इमारतें आज भी ऐसी हैं जिन्हें देख कर अंग्रेजों के शासन की याद ताजा हो जाती है जबकि कुछ ऐतिहासिक स्थानों को देख कर भगवान शिव, श्री गुरु नानक देव जी, कार्तिक महाराज, महाराज अकबर, महाराजा रणजीत सिंह, महान योद्धा बंदा बहादुर आदि की याद ताजा हो जाती है परंतु कुछ इमारतों को देख कर जिला प्रशासन व पुरातत्व विभाग की कारगुजारी पर भी कई तरह के प्रश्न चिन्ह लगते हैं।प्रशासन और इस पुरातत्व विभाग की लापरवाही के कारण कुछ इमारतें खंडहर का रूप धारण कर चुकी हैं और पुरातत्व विभाग इन ऐतिहासिक स्थानों पर अपना चेतावनी बोर्ड लगा कर ही काम चलाता आ रहा है। यही कारण है कि कई राष्ट्रीय धरोहरें इस समय अपना महत्व खो चुकी हैं या महत्व खोती जा रही हैं।
अन्य ऐतिहासिक स्थानों की हालत क्या है
डेरा बाबा नानक के गुरुद्वारे, काहनूवान का गुरुद्वारा घल्लूघारा, गुरुद्वारा बाठ साहिब, अचलेश्वर गुरुद्वारा, कंद साहिब सहित अन्य सभी धार्मिक स्थान बहुत अच्छी हालत में हैं। जबकि पिण्डोरी धाम, बावा लाल मंदिर ध्यानपुर, अचलेश्वर मंदिर, कलानौर के महाकलेश्वर मंदिर को छोड़ कर अन्य सभी धार्मिक स्थानों की हालत बहुत ही ङ्क्षचताजनक है। श्री दरबार साहिब डेराबाबा नानक भी जिला गुरदासपर का एक विशेष धार्मिक स्थान है जिसमें इतिहास के अनुसार पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतार साहिब से समाध की मिट्टी को यहां लाया गया था और एक विशाल गुरुद्वारा स्थापित हो चुका है।
इसी तरह इस कस्बे में गुरुद्वारा चोला साहिब भी विशेष महत्व रखता है। इसी तरह दीनानगर में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाई बारादरी जहां पर वह विश्राम करने के लिए आते थे। लम्बा समय यह बारादरी सरकार के अधीन रही और विश्राम घर के रूप में ही प्रयोग होती रही परंतु अब इस स्थान पर गुरुद्वारा बना दिया गया है। इस बारादरी के कभी 12 दरवाजे होते थे जबकि अब इसमें परिवर्तन कर मात्र 2 दरवाजे ही रह गए हैं।