Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 10:31 AM
जिला बनने के बाद नगर को कई ज्वलंत समस्याओं ने बुरी तरह घेर लिया है। इसमें आवारा एवं खूंखार कुत्तों की समस्या भी है। लंबे अर्से से आवारा कुत्तों की नसबंदी न होने से क्षेत्र में कुत्तों ने अपनी पक्की सल्तनत स्थापित कर ली है। वहीं प्रशासन फिलहाल बेबस...
पठानकोट(शारदा): जिला बनने के बाद नगर को कई ज्वलंत समस्याओं ने बुरी तरह घेर लिया है। इसमें आवारा एवं खूंखार कुत्तों की समस्या भी है। लंबे अर्से से आवारा कुत्तों की नसबंदी न होने से क्षेत्र में कुत्तों ने अपनी पक्की सल्तनत स्थापित कर ली है। वहीं प्रशासन फिलहाल बेबस नजर आ रहा है। आवारा कुत्तों की नसबंदी को लेकर ‘झोल’ बरकरार है तथा यह मामला नगर निगम व वैटर्नरी विभागों के बीच फंसा हुआ है।
जनता इन दिनों खूंखार कुत्तों की समस्या से बुरी तरह जूझ रही है। आमजन के लिए जी का जंजाल बनी इस समस्या से निपटने के लिए न तो प्रशासन इच्छाशक्ति दिखा रहा है तथा न ही इस समस्या का पक्का तोड़ आम जनता को सामने नजर आता है। ऐसे में दिनों-दिन नगर व आस-पास बढ़ रही आवारा व खूंखार कुत्तों की फौज से जनसाधारण बुरी तरह सहमा हुआ है क्योंकि खूंखार कुत्ते अब आम जनता को काटने व डराने से ऊपर आदमखोर बनने की ओर अग्रसर हैं जोकि खौफनाक स्थिति है।
यही कारण है कि नगर का कोई चौराहा, बाजार या गली शायद ही ऐसी बची होगी जहां आवारा कुत्तों की भरमार नजर न आए। इस पर भी आलम यह है कि आवारा कुत्ते अक्सर झुंडों के रूप में गलियों व बाजारों में बेखौफ घूमते हैं जो सामान्य राहगीर विशेषकर बच्चों व बुजुर्गों के लिए निरोल रूप से खौफ खाने जैसा सबब है। एक आंकड़े के अनुसार नगर में आवारा कुत्तों की संख्या का आंकड़ा करीब एक हजार से ऊपर को छू चुका है जो कि निश्चित रूप से भयावह स्थिति है। बावजूद इसके इस समस्या से निपटने के लिए फिलहाल कोई भी विभाग मुस्तैदी दिखाता नहीं दिख रहा है। वहीं डॉग बाइटिंग के आंकड़े भी रिकार्ड छू रहे हैं।
चूंकि आवारा कुत्तों की समस्या पर काबू पाना नागरिक प्रशासन के अधीन आता है, जबकि आवारा कुत्तों की नसबंदी पशु पालन विभाग का कार्य है परन्तु पशु पालन विभाग के पास सिर्फ 1 पशु चिकित्सक व 1 सहायक ही उपलब्ध, जबकि नसबंदी पर आने वाला खर्चा व कुत्तों की धरपकड़ हेतु पर्याप्त संसाधन का जिम्मा नगर निगम का है जिसे सरकार की ओर से फंड इस बाबत दिया जाता है। ऐसे में न तो निगम प्रशासन ने पिछले कई वर्षों से आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए पहल तथा खर्चा जुटाया, वहीं पशु पालन भी ढिलमुल रवैया अपनाए हुए है कि जब निगम कवायद छेड़ेगा तब नसबंदी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ऐसे में दो पाटों के बीच में आम जनता पिस रही है जिसके लिए आवारा कुत्तों की फौज सिरदर्द बनी हुई है तथा आम जनता को डॉग बाइटिंग व उसके बाद इलाज हेतु होने वाले कटु अनुभव से गुजरना पड़ रहा है।
क्या कहता है पशु पालन विभाग
इस संबंध में पशु पालन विभाग के अधिकारी डा. कुलभूषण शर्मा ने कहा कि उनका विभाग केवल कुत्तों की नसबंदी समय-समय पर सरकार अथवा प्रशासन के निर्देश जारी होने पर करता है परन्तु एक कुत्ते की नसबंदी पर 1000 से 2000 रुपए का खर्चा आता है। इतने संसाधन व फंड पशु पालन विभाग के पास नहीं हैं जिसका जिम्मा निगम प्रशासन का है कि वो इसके लिए फंड जुटाए। इसके बाद ही जाकर आवारा कुत्तों की नसबंदी की कवायद शुरू हो सकती है जो कि पिछले कई वर्षों से नहीं हुई है इसलिए अवारा कुत्तों की संख्या बढ़ रही है।
क्या कहता है सेहत विभाग
इस संबंध में सिविल अस्पताल के एस.एम.ओ. डा.भूपिन्द्र सिंह ने कहा कि सिविल अस्पताल डॉग बाइटिंग के केसों में बढ़ौतरी हो रही है। हालांकि डॉग बाइटिंग के अधिकांश मामले गर्मियों में अधिक व सॢदयों में कम आते हैं परन्तु इनका ग्राफ हर वर्ष बढ़ रहा है। जनवरी माह से अब तक के महीनों में डॉग बाइटिंग के करीब 3700 से ऊपर मामले सामने आए हैं जिनका इलाज किया गया है। इनमें से कई रैबीज के भी हैं जिनका पूरा कोर्स करके इलाज किया गया है।
यह है डॉग बाइटिंग का इलाज
*शरीर के जिस स्थान पर रैबीज लक्षण वाले कुत्ते ने काटा है उसे बारम्बार (कम से कम 50 बार) देसी साबुन से धोएं।
*इसके तुरंत बाद टैटनिस का इंजैक्शन लगवाएं, प्रभावित रोगी को 6 एंटी रैबीज इंजैक्शन का कोर्स करवाएं
*काटे गए स्थल को पट्टी न बांधे अपितु खुला रखें
*डाक्टर के परामर्श अनुसार पूरा परहेज रखें
क्या कहता है निगम प्रशासन
नगर निगम के सुपरिंटैंडेंट इन्द्रजीत सिंह ने सम्पर्क करने पर कहा कि कुत्तों की नसबंदी निगम प्रशासन का नहीं अपितु वैटर्नरी अस्पताल का दायित्व है तथा न ही निगम के पास इस बाबत कोई फंड है। इसके अतिरिक्त पशु पालन विभाग जो भी आवारा कुत्तों की धरपकड़ हेतु मैन पॉवर व अन्य सहायता की मांग करेगा वो मुहैया करवाई जाएगी।