Edited By Updated: 17 Apr, 2017 11:40 PM
या दुश्मन? दोनों। वास्तव में भारत-पाक संबंधों में यह उतार-चढ़ाव हमेशा..
या दुश्मन? दोनों। वास्तव में भारत-पाक संबंधों में यह उतार-चढ़ाव हमेशा देखने को मिलता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। वर्तमान में दोनों देशों के बीच टकराव चल रहा है और दोनों का कहना है कि हमारे मामलों में हस्तक्षेप न करें। टकराव का हालिया कारण 46 वर्षीय नौसेना के पूर्व अधिकारी और ईरान में व्यवसाय कर रहे कुलभूषण जाधव की पाक खुफिया एजैंसी द्वारा जासूसी के आरोपों में बलोचिस्तान से गिरफ्तारी करना और बाद में पाक सैनिक न्यायालय द्वारा उन्हें मृत्यु दंड देना है।
पाकिस्तान ने जाधव को राजदूतावास सहायता भी उपलब्ध नहीं कराई है। भारतीय उच्चायुक्त ने पिछले वर्ष 14 बार जाधव से मिलने का प्रयास किया किंतु उन्हें उनके स्थान, दशा आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं दी हालांकि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत राजदूतावास सहायता अनिवार्य है। इसके साथ ही पाक सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने इस पर स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में कोई समझौता नहीं होगा। लाहौर बार काऊंसिल ने जाधव की वकालत करने के लिए वकीलों पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत पाक सैन्य न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील करेगा और इसके लिए वह पाक सेना अधिनियम का अध्ययन कर रहा है।
इस एक घटना से पाकिस्तान द्वारा उड़ी हमले के बाद अब भारत-पाक संबंधों में और गिरावट आ गई है। भारत सरकार इस मामले में विकल्पों का मूल्यांकन कर रही है और भारतीय संसद ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि जाधव के मुद्दे पर उसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब सबकी निगाहें प्रधानमंत्री मोदी पर हैं जिन्होंने अभी तक इस मुद्दे पर कुछ बोला नहीं है। वर्ष 2014 के बाद भारत की प्रतिक्रिया हमेशा नपी-तुली, नई और चकित करने वाली रही है जिसके चलते नमो ने अपने पूर्ववर्ती वाजपेयी की पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति को छोड़ा और प्रत्येक बड़े आतंकवादी हमले के बाद एक कदम आगे बढ़े और पाकिस्तान के विरुद्ध प्रतीकात्मक कार्रवाई की। पिछले वर्ष सितम्बर में सॢजकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति में रणनीतिक और युक्तियुक्त बदलाव आया और भारत ने बदले की कार्रवाई की। नमो भारतीयों की भावनाओं को समझते हैं और इसलिए वह अपनी बलपूर्वक कूटनीति के साथ-साथ प्रतीकात्मक कार्रवाई भी कर रहे हैं।
नि:संदेह मोदी दंड देकर प्रतिरोधक रणनीति अपना रहे हैं। इसका तात्पर्य है कि जब भी पाकिस्तान भड़काने की कार्रवाई करेगा तो उसे इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। उनका मानना है कि यदि पाकिस्तान यह समझ जाए कि भारत के विरुद्ध अपने दुस्साहस की उसे कीमत चुकानी पड़ेगी तो शायद वह ऐसी कार्रवाई से बाज आ जाए। इस कूटनयिक रणनीति में पुरानी उदार नीति के लिए कोई स्थान नहीं है। स्पष्ट है कि नमो ने खेल के नियम बदल दिए हैं और वह भारत की पाकिस्तान नीति के नियम नए सिरे से लिख रहे हैं।
प्रश्न उठता है कि क्या मोदी की इस क्षेत्र में भारतीय सर्वोच्चता की नीति के विरुद्ध पाकिस्तान के पास कूटनयिक उपाय हैं और क्या भारत द्वारा विदेश नीति में आक्रामक नीति अपनाने से इस क्षेत्र में मोदी के कार्यकाल के दौरान आक्रामक परिणाम मिलने की संभावना है? प्रधानमंत्री मोदी ने खैबर पख्तूनख्वा और बलोचिस्तान में पाकिस्तान की कमजोरी का स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने गिलगित, बाल्टिस्तान सहित पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान के कुकर्मों को उजागर किया है। साथ ही सिंधू जल समझौते पर पुनॢवचार करने का संकेत दिया है। इन सबके बारे में अब तक भारत में कोई सोच भी नहीं सकता था। कुल मिलाकर मोदी ने दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति तथा पिछले दरवाजे से बातचीत की नीति को छोड़ दिया है जिसके चलते भारत को भ्रमित, नरम और डरपोक माना जाता था।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि नमो ने शांति स्थापना का प्रयास नहीं किया। उन्होंने 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया और शांति की दिशा में उनका सबसे बड़ा जुआ काबुल से दिल्ली लौटने के दौरान दिसम्बर 2015 में लाहौर रुककर नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई देना था। कुछ लोगों का मानना है कि नमो केवल दिखावा कर रहे हैं और उनकी शक्तिशाली विदेश नीति से भारत को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। किंतु हमारी नरम नीति से भी हमें कोई सहायता नहीं मिली है। लोग भूल गए हैं कि भारत की पाकिस्तान नीति के मूल उद्देश्य ही बदल गए हैं।
पाकिस्तान के प्रति नीति में बदलाव को रेखांकित करते हुए भारत ने स्पष्ट किया है कि अतीत के उदाहरण पाकिस्तान और उसकी आतंकवादी सेना से निपटने के लिए हम पर बाध्यकारी नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय जगत में मोदी की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अनेक मुस्लिम देशों ने जाधव मामले में पाकिस्तान की ङ्क्षनदा की है। वस्तुत: पाकिस्तान द्वारा जाधव को मृत्यु दंड देने के अनेक खतरनाक परिणाम निकल सकते हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों में लगातार गिरावट आ रही है और अविश्वास बढ़ता जा रहा है। जब तक यह अविश्वास बरकरार रहेगा तब तक यह खेल जारी रहेगा। उसकी तीव्रता में समय-समय में अंतर आ सकता है।
भारत की इस नीति में उसे यह ध्यान में रखना होगा कि स्थिति उसके नियंत्रण में रहे और यह केवल भारत-पाक मुद्दा बना रहे। इसके लिए एक उपाय इसराईली रक्षा सेनाओं की रणनीति है जिसके अंतर्गत वे अपने दुश्मनों को गुनात्मक और मात्रात्मक दृष्टि से अत्यधिक नुक्सान पहुंचाते हैं। दंडात्मक कार्रवाई के भय से अगला टकराव टलेगा और पाक सेना की महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगेगा। पाकिस्तान आज आगे कुआं, पीछे खाई की स्थिति में फंसा हुआ है। कठपुतली प्रधानमंत्री की डोर सेना के हाथों में है। पाकिस्तान की सोच सैनिक है और 1947 के बाद से ही वह भारत विरोधी भावनाओं से पोषित हो रही है। जब भारत की बात आती है तो पाक सेना, आई.एस.आई., राजनीतिज्ञ, वहां का नागरिक समाज आदि के एक ही विचार होते हैं, हालांकि लॉलीवुड और कोक स्टूडियो सोसायटी कुछ और सोचते होंगे।
इस खेल में दोनों अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं और दोनों के बीच टकराव तब तक जारी रहेगा जब तक कश्मीर के मूल मुद्दे का समाधान नहीं हो जाता। कोई भी युद्ध नहीं चाहता है किंतु साथ ही भारत को यह स्पष्ट करना होगा कि पाक प्रायोजित आतंकवाद और उसके आई.एस.आई. के आकाओं को उचित प्रत्युत्तर दिया जाए। भारत-पाकिस्तान संबंधों की दीर्घकालीन संभावनाएं बड़ी सीमा तक भारत के रणनीतिक लक्ष्यों, उद्देश्यों पर निर्भर करेंगी और इस समीकरण का दूसरा हिस्सा पाकिस्तान की नीति के लक्ष्य और इन संबंधों के बारे में उसके रुख पर निर्भर करेगा।
निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति एक रणनीतिक आवश्यकता है क्योंकि दोनों ही परमाणु शक्तियां हैं और उन्हें अपनी शक्तियों का उपयोग दोनों देशों में व्याप्त गरीबी को दूर करने के लिए आॢथक विकास पर लगाना चाहिए। किंतु केवल इन कारकों से दोनों देशों के बीच स्थायी शांति और मैत्री स्थापित नहीं हो सकती। कुल मिलाकर भारत और पाकिस्तान के संबंधों में बीच-बीच में तनाव बनता रहेगा क्योंकि भारत दक्षिण एशिया में अपना वर्चस्व चाहता है और साथ ही कश्मीर का मुद्दा भी अनसुलझा है, इसलिए निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच वास्तविक मैत्री की संभावनाएं कम ही हैं। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हों, तनाव कम हो और पारस्परिक लाभ के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग हो।
इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी कि भाजपा के शासन दौरान भारत-पाक संबंधों का क्या होगा। निश्चित रूप से हम यह कह सकते हैं कि मोदी खतरे को भांपते हैं और वह इस खतरे को वापस पाकिस्तान पर थोप सकते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि इस खेल में आगे कैसे बढऩा है। अब हम भारत पर सौ घाव करने की बातों से घबराने वाले नहीं हैं। संबंधों में सुधार के लिए दोनों पक्षों का आगे बढऩा आवश्यक है। हमें ध्यान में रखना होगा कि ताली एक हाथ से नहीं बजती है।