सड़क हादसों का पर्याय बना हिमाचल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jul, 2017 12:06 AM

himachal becomes synonymous with road accidents

विगत कई सालों से हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में हादसे साल दर साल किस गति से घटित हुए हैं कि ....

विगत कई सालों से हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में हादसे साल दर साल किस गति से घटित हुए हैं कि इस राज्य को अब हादसों का पर्याय कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। इसी वित्तीय वर्ष में 19 अप्रैल को शिमला जिला के गांव नेरवां में लालढाक-पौंटा-रोहड़ू नैशनल हाईवे पर गुम्मा के नजदीक हुए बस हादसे ने 46 अनमोल इंसानी जिंदगियां लील ली थीं। विगत सप्ताह रामपुर बुशहर के निकट खनेरी में एक दुर्र्भाग्यपूर्ण हादसे में 28 बेशकीमती जानें काल का ग्रास बनीं जबकि 9 व्यक्ति बुरी तरह से घायल हुए। 

पिछले 10 सालों के दौरान इस पहाड़ी राज्य में इस तरह के छोटे-बड़े कुल 3036 हादसों में 10,262 लोगों की मृत्यु हुई जबकि 5312 लोग घायल होकर स्थायी या अस्थायी दिव्यांगता का दंश झेलने पर विवश हुए हैं। स्वाभाविक है कि इन सब हादसों ने मानवीय संवेदनाओं को समक्ष लाकर हर किसी को झकझोर दिया है। हिमाचल प्रदेश देश में एक विकासोन्मुखी राज्य है। दुनियाभर के लोग इस प्रदेश की प्राकृतिक एवं भौगोलिक संरचना से मंत्रमुग्ध हो पर्यटन तथा अन्य आकर्षणों से खिंचे आते हैं, पर भरसक प्रयासों के बावजूद हादसों को कम करने के हमारे प्रयासों के नाकाफी होने से इतनी इंसानी जिंदगियां खोती जा रही हैं जिससे निश्चित रूप से हिमाचल शर्मसार हुआ है। 

स्वाभाविक है कि मानवीय संवेदना के इस मुद्दे पर सरकार के संबंधित विभागों तथा तमाम नागरिकों को गहनता और गंभीरता के साथ क्या चिंता एवं चिंतन की जरूरत नहीं? सड़क दुर्घटनाओं में कमी के लिए राज्य सरकार तथा अन्य स्टेक होल्डरों के प्रयास नाकाफी हैं। इस दिशा में और अधिक संवेदनशील होकर पग उठाए जाने की जरूरत है। प्रदेश सरकार ने जिस सड़क सुरक्षा नीति का प्रतिपादन करके 26 दिसम्बर 2016 को अधिसूचित किया था, उस पर अक्षरश: अमल नहीं हुआ है। सरकारी नीति या कार्यक्रम के कारगर क्रियान्वयन को दर्शाने के लिए आंकड़ों के मकडज़ाल में फंसे रहने की नहीं अपितु धरातल पर उभरी या चल रही स्थितियों से आकलन की जरूरत होती है। 

दुर्घटनाओं को कम करने में सड़कों का रख-रखाव एक बड़ा फैक्टर है। प्रशिक्षित सड़क इंजीनियर, पर्याप्त बजट तथा विभागीय चौकसी में हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं तो बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। विभाग तथा पुलिस ने इस प्रदेश में 300 से ज्यादा संभावित दुर्घटना स्थलों की पहचान की है। इनमें ज्यादा प्राथमिकता वाले 90 ब्लैक स्पॉट हैं जिनका राग वर्षों से अलापा जा रहा है। हमारी सड़कें तंग हैं, सर्पीली हैं, अंधे मोड़ वाली हैं जिनके परिप्रेक्ष्य में ओवर स्पीड, जल्दबाजी, असुरक्षित वाहनों के साथ वाहन चालक नियंत्रित गति सीमा की उपेक्षा करके हादसों को सरअंजाम देते हैं। इन पहाड़ी मार्गों पर भी वाहन चालक ओवरटेक करने तथा स्पीड की होड़ में भयंकर हादसे कर लेते हैं। न्यायालयों के स्पष्ट आदेश के बावजूद सड़कों पर बड़े-बड़े होॄडग्स और वाहन  चालकों का ध्यान बांटने वाले बोर्ड आम देखे जा सकते हैं जिनके कारण भी हादसे होते हैं। 

प्रदेश में जनसंख्या बढ़ी है। सड़कें पहले ही संकरी हैं जिस पर लोगों ने जगह-जगह अतिक्रमण कर रखा है। बाईपास व फ्लाईओवर अभी तक सब जगह नदारद हैं। छोटे-बड़े सभी वाहनों की संख्या भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। इधर घनी आबादी होने के बावजूद कोई भी शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों, नगरीय क्षेत्रों में गति सीमा, ध्वनि यंत्रों पर नियंत्रण व नियमों का पालन नहीं करता। यह भी सत्य है कि सारे प्रदेश में पैदल चलने वालों पर मौत की छाया मंडराती रहती है क्योंकि उनके सुरक्षित आने-जाने के लिए कहीं पर भी कोई सुविधा या सुरक्षित व्यवस्था नहीं है। इस सब के परिप्रेक्ष्य में और प्रदेश में हो रहे लगातार हादसों के सिलसिलों को देखते हुए क्या यह विषय गहन और गंभीर, चिंता एवं चिंतन का नहीं है?

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