Edited By Updated: 19 Feb, 2017 12:36 AM
जयललिता के बारे में मैं अपनी ओर ...
जयललिता के बारे में मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कहूंगा, केवल गत 25 वर्षों के घटनाक्रमों को याद करते हैं। एम.जी. रामचन्द्रन (एम.जी.आर.) ने 1972 में अपनी पार्टी (डी.एम.के.) से अलग होकर आल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) का गठन कर लिया। वह 1977, 1980 तथा 1984 में मुख्यमंत्री चुने गए और अपने निधन तक अविजित रहे। उन्होंने जयललिता को चुना और उन्हें तराशा। एम.जी.आर. के निधन के बाद पार्टी बंट गई और 1989 में चुनाव हार गई मगर जयललिता के नेतृत्व में फिर से इसमें एकजुटता हो गई। शीघ्र ही जयललिता का पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण हो गया और उन्होंने पार्टी को एक वफादार इक_ में बदल दिया जो एक देवी की तरह उनकी पूजा करती थी।
जोखिम भरा रास्ता चुना
जयललिता पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री चुनी गईं। अपने पहले कार्यकाल (1991-96) के दौरान उन्होंने और उनके सहयोगियों (वी.के. शशिकला तथा उनका समूह) ने भ्रष्ट तथा गैर-कानूनी तरीकों से धन जमा करने का जोखिम भरा रास्ता चुना। यद्यपि जयललिता इसके बाद 3 बार (2001, 2011 तथा 2016) मुख्यमंत्री चुनी गईं और उन्हें अपने निधन तक जनता के व्यापक हिस्से का समर्थन प्राप्त था, अन्नाद्रमुक की छवि धीरे-धीरे खराब होती गई थी। यह वह पार्टी नहीं थी जिसका गठन एम.जी.आर. ने किया था।
सुप्रीमकोर्ट के जयललिता तथा अन्य के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति (डी.ए.) के मामले में भ्रष्टाचार के दोष 1991-96 के कार्यकाल से संबंधित थे। जयललिता के दूसरे तथा तीसरे कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ एक के बाद एक मामले खारिज होते गए मगर डी.ए. के साथ कुछ अन्य मामले टिके रहे। शशिकला व उनका समूह न तो मामलों और न ही कानूनी झटकों से रुका। उन्होंने दूसरे तथा तीसरे कार्यकाल में और भी अधिक सम्पत्ति एकत्र कर ली। वह इतनी चतुर थीं कि जयललिता को यह एहसास तक नहीं हुआ कि उन्हें एक गहरी खाई में धकेला जा रहा है जहां से वह कभी भी सुरक्षित बाहर नहीं निकल सकतीं। जहां जयललिता को अधिकांश जनता का समर्थन प्राप्त था, जनता का वही वर्ग चुपचाप शशिकला व उनके समूह के खिलाफ हो गया। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने लोगों के इस दोहरे व्यवहार को नोटिस किया था।
जयललिता का 5 दिसम्बर, 2016 को निधन हो गया। 14 फरवरी, 2017 को सुप्रीमकोर्ट ने डी.ए. मामले में ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और शशिकला तथा 2 अन्य को सुनाई गई सजा भुगतने का आदेश सुनाया। जयललिता जेल जाने की बदनामी से बच गईं। ऐसा दिखाई देता था कि अन्नाद्रमुक के 2 धड़े इस निर्णय की गंभीरता को समझ नहीं पाए। एक धड़ा यह भूलकर कि जयललिता भी दोषी पाई गई थीं, इस निर्णय की ‘खुशी’ मना रहा था। दूसरा धड़ा इस बात को नजरअंदाज करते हुए निर्णय को नहीं मान पा रहा था कि जिस नेता को उन्होंने पहले चुना था वह अगले 4 वर्ष जेल में गुजारेंगी। हालांकि तमिलनाडु के लोग परवाह न करने वाले अथवा माफ कर देने वाले नहीं हो सकते।
प्रचंड आकांक्षाएं
अब जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक का एक अन्य स्व-विनाशकारी परिवर्तन से गुजरना तय है। कुछ दिनों के लिए एक नाजुक प्रबंध किया गया- शशिकला को पार्टी महासचिव तथा ओ. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया, मगर जैसे कि आशा थी यह व्यवस्था शशिकला और उनके परिवार की प्रचंड महत्वाकांक्षाओं के आगे ढह गई। उनका लक्ष्य केवल पार्टी पर नियंत्रण करना नहीं था, उनका लक्ष्य सरकार पर नियंत्रण था।
यह एक साहसी कदम था मगर यह शशिकला के समूह द्वारा 1996 से दिखाई जा रही धृष्टता तथा दिलेरी का एक हिस्सा था। लोगों का गुस्सा शशिकला के विरुद्ध खुलकर सामने आ गया जब उन्होंने पार्टी महासचिव बनने के लिए अपना रास्ता साफ किया तथा कुछ ही दिनों में एक बार फिर अन्नाद्रमुक विधायक दल की नेता चुनी जाने के लिए अपने रास्ते के सारे रोड़े साफ कर दिए। सोशल मीडिया खुलकर उनके खिलाफ बोला मगर ऐसा दिखाई देता था कि उन्हें इसकी परवाह नहीं थी।
अन्नाद्रमुक पार्टी में पहले जमीनी स्तर पर विघटन हुआ: अधिकांश लोग, विशेष कर गरीब वर्ग तथा महिलाएं उनके खिलाफ खुलकर बोलने लगे। पार्टी कार्यकत्र्ता दुविधा में पड़ गए और एक तरह से निष्क्रिय हो गए। केवल विधायक तथा पार्टी कार्याधिकारी ही थे जिन्होंने आज्ञाकारियों की तरह शशिकला को ‘श्रद्धांजलि’ दी और इस तरह व्यवहार किया जैसे उनके दास हों। आखिरी खेल अब अन्नाद्रमुक में व्यापक स्तर पर विघटन भी हो सकता है। यदि विधायक शशिकला की पकड़ कमजोर नहीं कर पाए या अब जब नए नेता के. पलानीसामी के अंतर्गत सरकार ने अपना बहुमत साबित कर दिया है तो लोगों तथा पार्टी/सरकार के बीच असंतोष और गहरा जाएगा।
संकेत उत्साहजनक नहीं हैं। अपनी जेल यात्रा के लिए बेंगलुरू रवाना होने से थोड़ी देर पहले शशिकला ने अपने 2 भतीजों (जिन्हें जयललिता ने पार्टी से निकाल दिया था) को फिर से पार्टी में शामिल कर लिया और उनमें से एक (दिनाकरन) को उनकी अनुपस्थिति में पार्टी चलाने के लिए उपमहासचिव नियुक्त कर दिया। यह बहुत हैरानीजनक है कि शशिकला समझती हैं कि वह अगले 4 वर्षों तक अपने ‘प्रोक्सीज’ के माध्यम से जेल से पार्टी तथा सरकार चला सकती हैं। उनकी नवीनतम कार्रवाई ने उनके तथा तमिलनाडु के बीच असंतोष को और पुख्ता कर दिया है। शशिकला संभवत: आज तमिलनाडु में सर्वाधिक ङ्क्षनदित सार्वजनिक शख्सियत हैं।
ऐसा दिखाई देता है कि अपने 41वें वर्ष में
अन्नाद्रमुक अपनी मौत की ओर दौड़ रही है। यह भाग्य का क्रूर खेल है कि जिस पार्टी की स्थापना भ्रष्टाचार से लड़ाई के मुद्दे पर की गई थी, वह इसके सुप्रीम तीसरे नेता (और अंतिम भी) के भ्रष्टाचार द्वारा दफन कर दी जाएगी।