Edited By Updated: 19 Feb, 2017 12:41 AM
पागलों की तरह उछल रही है। पार्टी के गुस्से को...
पागलों की तरह उछल रही है। पार्टी के गुस्से को नरेन्द्र मोदी की वाकपटुता ने बढ़ा दिया है। इसका मानना है कि मोदी ने मनमोहन सिंह के प्रति अशिष्टता दिखाई है। कांग्रेस ने उनसे माफी की मांग की है और यदि ऐसा नहीं होता तो पार्टी ने संसद सत्रों के दौरान प्रधानमंत्री का बहिष्कार करने का निर्णय किया है।
सच यह है कि हममें से बहुतों की तरह कांग्रेस में हास्य भावना की कमी है। मोदी द्वारा मुहावरे का इस्तेमाल बेशक बहुत बढिय़ा नहीं था, मगर निश्चित तौर पर यह परिहास युक्त था। आखिरकार यह हाजिरजवाबी का एक नमूना था। समस्या यह है कि हम किसी दूसरे पर अच्छा चुटकला पसंद करते हैं, मगर जब खुद की बात आती है, तो हम इसे अपना अपमान समझ लेते हैं और दांत पीसना अपना धर्म समझते हैं। ठीक यही व्यवहार कांग्रेस कर रही है।
इसके विपरीत देखें कि कैसे ब्रिटिश राजनीतिज्ञों, जिनमें कई वर्तमान तथा पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, ने सदियों तक एक-दूसरे का हवाला दिया। 18वीं शताब्दी में जब चौथे अर्ल आफ सैंडविच ने गुस्से में जॉन विल्कीस को कहा, ‘‘श्रीमान मुझे नहीं पता कि आप फांसी पर मरेंगे अथवा चेचक से,’’ तब जॉन ने उत्तर दिया था कि ‘‘यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या मैं आपके आधिपत्य के निर्णयों को गले लगाता हूं या फिर आपकी मिस्ट्रैस को।’’मेरा पसंदीदा वाद-विवाद विलियम ग्लैडस्टोन तथा बेंजामिन डिसराएली के बीच है, जो 19वीं शताब्दी के अंत में प्रधानमंत्री के पद के लिए मैदान में थे।
प्रधानमंत्रियों द्वारा एक-दूसरे की बात काटना ब्रिटिश संसदीय चलन का एक पवित्र हिस्सा बन चुका है। क्लीमैंट फ्रियूड ने माग्रेट थैचर को ‘एटिला द हैन’ कहा था। नॉर्मल सेंट जॉन-स्टीवास ने थैचर को ‘द ब्लैस्ड माग्रेट’ नाम दिया था। निकोलस फेयरबेयर्न ने जॉन मेजर को एक प्रधानमंत्री की बजाय ‘पेट बोले की कठपुतली’ कहा था। जबकि चॢचल ने एटली को ‘भेड़ के कपड़ों में भेड़’ की संज्ञा दी थी।
सच यह है कि सभी तरह के अपमान हाऊस आफ कामन्स में कहे-सुने जाते हैं। मगर जिस व्यक्ति को ऐसी बातें कही गई होती हैं, वह शायद ही माफी की मांग करता है। यहां तक कि अत्यंत कड़े लोग भी परिहास करने में सक्षम होते हैं। हैरोल्ड विल्सन ने एक बार अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से कहा था, ‘‘टोनी बेन एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें मैं जानता हूं, जो उम्र के साथ-साथ अपरिपक्व होते जा रहे हैं।’’
इसलिए, विरोधियों द्वारा हमला किए जाने की सूरत में दांत पीसने की बजाय कांग्रेस को जो मिला है, उससे बेहतर लौटाने की कला सीखनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं है तो कम से कम दांत निपोर कर मुस्कुराने का प्रयास तो करना चाहिए। सदन के कार्यों को अवरुद्ध करना न केवल बचकाना है, बल्कि यह इस बात का पक्का संकेत भी है कि आप कोई परिहास अपने ऊपर नहीं ले सकते।