Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Feb, 2018 10:05 AM
वैसे तो स्कूल जाते बच्चों की सुरक्षा के नाम पर हर कोई किताब लिखने जितना बोल सकता है परंतु अमली जामा पहनाने के नाम पर एक किताब के टाइटल जितना भी काम नहीं हो रहा। इस मामले में स्कूल प्रबंधक या प्रशासन ही नहीं, बल्कि अभिभावक भी लापरवाही कर रहे हैं।
बठिंडा(बलविंद्र): वैसे तो स्कूल जाते बच्चों की सुरक्षा के नाम पर हर कोई किताब लिखने जितना बोल सकता है परंतु अमली जामा पहनाने के नाम पर एक किताब के टाइटल जितना भी काम नहीं हो रहा। इस मामले में स्कूल प्रबंधक या प्रशासन ही नहीं, बल्कि अभिभावक भी लापरवाही कर रहे हैं। हाल यह है कि हर कोई बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर फैंकने में माहिर हो चुका है लेकिन अपना फर्ज समझने को तैयार नहीं है। बकायदा डी.सी. बठिंडा ने निर्देश जारी किए थे कि स्कूल वैनों की पार्किंग स्कूलों कें अंदर हो। बच्चे उतारने व चढ़ाने का काम भी स्कूल के अंदर ही हो। इस समय विशेष प्रिंसीपल या अन्य अध्यापक मौजूद रहें।
स्कूल वैनों के लिए क्या हैं नियम
-स्कूल वैन 15 वर्ष से पुरानी नहीं होनी चाहिए।
-स्कूल वैन पर पीला रंग होना चाहिए।
-स्कूल वैन चालक व सहायक ने वर्दी पहनी हो।
-स्कूल वैन में फस्र्ट एड किट होनी चाहिए।
-स्कूल वैन गैस वाला न हो।
- स्कूल वैन शर्तें पुरी करती हो तभी उसको परमिट दिया जाए।
स्कूल वैनों के लिए नियम ठेंगे पर
अधिकतर स्कूल वैनें 15 वर्ष से भी पुरानी हैं, जिनका परमिट नहीं बन सकता। अधिकतर वैन चालक दिल्ली या गुजरात से बंद बॉडी वाहन सस्ते मूल्य पर लेकर आते हैं, जो वहां कंडम करार दिए गए होते हैं जिनको गैस पर भी चलाया जा रहा है। फिर उनको पीला रंग करवा दिया जाता है ताकि ट्रैफिक पुलिस या स्कूल प्रबंधकों की आंखों में धूल झोंकी जा सके। फिर वर्दी पहनने का सवाल ही पैदा नहीं होता। वैनों में फस्र्ट एड किट भी नहीं रखी जाती है। स्कूल वैनों के लिए परमिट लेना जरूरी है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि वे शर्तें पुरी नहीं करतीं। इसलिए चालक परमिट भी नहीं लेते क्योंकि कोई पूछने वाला नहीं है। भले डी.सी. ने आदेश जारी किए हैं कि स्कूल प्रबंधक ब"ाों की सुरक्षा की तरफ ध्यान दें। बहुत कम स्कूल हैं जो इस तरफ ध्यान दे रहे हैं।
स्कूल के बाहर बच्चे करते हैं कराटे, प्रबंधक अंदर भरते हैं खराटे
स्कूल की छुट्टी के समय स्कूल वैनें या अभिभावकों के वाहनों को स्कूल के अंदर दाखिल होने की इजाजत नहीं तो वे गेट के बाहर रुकते हैं। मौके पर कोई अध्यापक या पिं्रसीपल तो क्या स्कूल वैनों के चालक भी मौजूद नहीं रहते। ऐसी स्थिति में ब"ो क्या गुल खिलाते होंगे, यह अंदाजा लगाया जा सकता है। जब प्रबंधक स्कूल के अंदर ‘खराटे’ भर रहे होते हैं, तब ब"ो बाहर कराटे कर रहे होते हैं। ब"ो जी.टी. रोड को खेल मैदान बना लेते हैं। एक-दूसरे के पीछे दौडऩा आदि कई तरह की शरारतें करते आम ही देखे जाते हैं। कई बार हुआ है कि ब"ाों के छोटे-मोटे हादसे भी होते हैं, बचाव तो रोजाना हो जाता है लेकिन क्या स्कूल प्रबंधक या माता-पिता किसी बड़ी घटना का इंतजार कर रहे हैं।