सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे सिंगल सिनेमा हॉल बंद होने के कगार पर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 03:33 PM

bathinda cinema hall

आधुनिक दौर में मल्टीप्लैक्स का जमाना है जहां पर एक ही जगह पर 3 या इससे अधिक फिल्में देखने की सुविधा है। आधुनिक सुख-सुविधा से लैंस मल्टीप्लैक्स के प्रति लोगों का रूझान ज्यादा हो गया है। खासकर युवाओं का इसकेप्रति कै्रज बढ़ गया है। ऐसे में सिंगल...

बठिंडा(आजाद): आधुनिक दौर में मल्टीप्लैक्स का जमाना है जहां पर एक ही जगह पर 3 या इससे अधिक फिल्में देखने की सुविधा है। आधुनिक सुख-सुविधा से लैंस मल्टीप्लैक्स के प्रति लोगों का रूझान ज्यादा हो गया है। खासकर युवाओं का इसकेप्रति कै्रज बढ़ गया है। ऐसे में सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमा हॉल आऊट डेटिड हो गए हैं। कभी इन सिनेमा हॉल में शुक्रबार को टिकट खिड़की पर टिकट लेने के लिए धक्का-मुक्की करके टिकट प्राप्त करने वालों कि होड़ लगी रहती थी। एक जमाने में टिकटों की मारामारी के चलते ब्लैकियों का दबदवा भी था। ब्लैक में टिकट बेचने वाले जोर-जोर से सिनेमा शौकीनों को अपनी और आकॢषत करते थे। तब भी कितनों को टिकट नहीं मिलता तो वे ब्लैक से टिकट खरीद कर फिल्म देखने के लिए मजबूर होते थे। 

आज उसी सिंगल सिनेमा की यह हालत हो गई है कि इन सिनेमा हॉल को दर्शकों के लाले पड़े हुए हैं। इस वजह से इन सिनेमा हॉल कीस्थिति दिन व दिन दयनीय होती जा रही है। सुविधाओं के अभाव के कारण दर्शकों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि 1000 क्षमता वाले सिनेमा हॉल में मात्र कुछ दर्जन लोग ही पहुंच पाते हैं। वह भी अगर हिन्दी की कोई फिल्म चलती है तो दर्शक कम हो जाते हैं पंजाबी फिल्म व भोजपुरी फिल्म के दर्शक ही सिनेमा देखने को आते हैं जिसमें रिक्शा चालक और मजदूरों की संख्या अधिक होती है। यही वजह है कि शहर में जो 2 सिनेमा हॉल चल रहे हैं, वे भी बंद होने के कगार पर हैं। सिनेमा हॉल चलाना अब जोखिम भरा काम है क्योंकि इसमें खर्च बढ़ गए हैं, आमदनी कम हो गई है जिसके चलते सिनेमा घर खंडहर में तबदील हो रहे हैं। उनकी कोई मुरम्मत नहीं, जबकि मशीनें भी पुरानी लगी हुई हैं और पर्दे व साऊंड सिस्टम भी बाबा आदम के जमाने के हंै। पहले सिनेमा हॉलों में पंखे व कूलर थे लेकिन मल्टीप्लैक्स पूरी तरह वातानुकूलित हैं और आधुनिक तौर तरीके से बने हैं जहां हर कोई जाना पसंद करता है। 

क्या कहना है सिनेमा संचालकों का 
सुखराज सिनेमा के  मैनेजर ओमकार दत्त का कहना है कि सिनेमा हॉल से मालिक का भावनात्मक लगाव है जिसकी वजह से इस सिनेमा हॉल को बंद नहीं किया गया है वर्ना यह कब का बंद हो गया होता, क्योंकि यह कारोबार अब फायदे का नहीं रहा। सिनेमा हॉल के मैनेजर से बातचीत के बाद लगता यही है कि स्टेटस सिंबल बचाए रखने का संघर्ष चल रहा है। कछुआ चाल चलने वाले पुराने सिनेमा घर कभी भी बंद हो सकते हैं।  उडांग सिनेमा हॉल अमरीक सिंह रोड के  मालिक का कहना है कि हॉल की क्षमता 999 सीट की है। अभी सामान्यत: नाइट शो बंद रहता है। अन्य 3 शो में करीब 100 से 125 दर्शक ही आते हैं। हरचंद सिनेमा जी.टी. रोड स्थित के प्रबंधक ने बताया कि सीटों की क्षमता नियमानुसार 999 की है। बामुश्किल 4 दर्जन दर्शक ही आते हैं। वह तो केवल सिनेमा का अस्तित्व बचाए हुए हैं वर्ना नई युवा पीढ़ी को सिनेमा हॉल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी। सस्ते मनोरंजन का साधन अब लुप्त होता जा रहा है, इसके पीछे प्रत्येक घर में इंटरनैट की व्यवस्था हो चुकी है किसी भी पिक्चर को घर बैठे भी देखा जा सकता है। 


जी.एस.टी. से मिली राहत
अमरीक सिंह रोड के सिनेमा मलिक का कहना है कि जी.एस.टी. लागू होने से सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमा हॉल को राहत मिली है। पहले सीट क्षमता के अधार पर टैक्स लगते थे, अब टिकट के आधार पर टैक्स देते हैं। बताया गया कि यदि 10 टिकट कटेगा तो 10 पर ही टैक्स देना है। पहले सीट के हिसाब से तय होता था। शो चले या बंद रहे, हॉल खाली रहे या फुल, तय टैक्स ही देना होता था।

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