पत्थरबाजों के विरुद्ध सेना व जम्मू-कश्मीर सरकार का देर से किया गया सही फैसला

Edited By Updated: 19 Feb, 2017 12:28 AM

army and the jammu and kashmir government has delayed decision

पाकिस्तान की स्थापना के समय से ही इसके शासकों ने भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ रखा है

पाकिस्तान की स्थापना के समय से ही इसके शासकों ने भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ रखा है। इसके पाले हुए आतंकवादियों और अलगाववादियों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद भड़काने, बगावत के लिए लोगों को उकसाने, पत्थरबाजी और हिंसा करवाने का सिलसिला लगातार जारी रखा हुआ है। पाकिस्तान से मिलने वाली भारी आॢथक मदद से ये अलगाववादी खुद तो ऐश करते हैं, अपना इलाज, बच्चों की पढ़ाई व शादी-विवाह आदि कश्मीर से बाहर सुरक्षित स्थानों पर करवाते हैं, परंतु गरीब कश्मीरी बच्चों को बहला-फुसलाकर, नाममात्र की उजरत देकर पत्थरबाज और आतंकवादी बना रहे हैं। 

 

इसी कारण पिछले 2 दशक से अधिक समय से जम्मू-कश्मीर अशांति का शिकार है, जिसे देखते हुए जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक से अधिक बार कड़े शब्दों में अलगाववादियों की पोल खोल चुकी हैं। 31 मई, 2016 को उन्होंने कहा था कि ‘‘शुक्रवार का दिन एक पवित्र दिन हुआ करता था। जो लोग मुझे मुस्लिम विरोधी और कश्मीर विरोधी बताते हैं, उन्होंने यह दिन पत्थरबाजी व शांति भंग करने के दिन में बदल दिया है। इस्लाम हत्या करने व धार्मिक नारे लगाने का उपदेश नहीं देता।’’

 

इसी प्रकार गत वर्ष जुलाई में आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद घाटी में जारी ङ्क्षहसा पर 24 अगस्त, 2016 को महबूबा ने कहा था कि ‘‘पथराव तथा सुरक्षा शिविरों पर हमले करके किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों ने अपने नाजायज मकसद के लिए बच्चों को भट्ठी में डाल दिया है...हम कश्मीर को जहन्नुम नहीं बनने देंगे।’’ 

 

अलगाववादियों के बहकावे पर घाटी में ङ्क्षहसा जारी रखने तथा प्रदर्शनों और स्थानीय आबादी द्वारा आतंकवादियों का साथ देने की शिकायतों को देखते हुए, सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने गत दिवस आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों पर पथराव करने वालों और उनके मददगारों को ‘चेतावनी’ देते हुए कहा  ‘‘पाकिस्तान के नारे लगाने, उसके झंडे लहराने व आतंकवाद को जारी रखने के इच्छुक लोगों को आतंकवादियों के जमीनी कार्यकत्र्ता मान कर देशद्रोही के तौर पर उसी के अनुरूप उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी और हथियारों का प्रयोग करने से भी संकोच नहीं करेंगे।’’

 

सेनाध्यक्ष की उक्त चेतावनी का जहां अधिकांश देशवासियों ने स्वागत किया है वहीं कश्मीरी अलगाववादियों पर इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है जिनका कहना है कि ‘‘ऐसे रवैए से सेना की कश्मीरी लोगों से दूरी बढ़ेगी और इससे घाटी में विध्वंस को बढ़ावा मिलेगा।’’ और अब रक्षा मंत्री मनोहर पाॢरकर ने सेनाध्यक्ष का समर्थन करते हुए कहा है कि ‘‘सैनिक कमांडरों को यह फैसला लेने की पूरी आजादी है कि विध्वंसकारियों व आतंकवादियों के विरुद्ध कैसे कार्रवाई की जानी है।’’ 

 

इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी 16 फरवरी को एक एडवाइजरी जारी करके श्रीनगर, बडगाम और शोपियां के तीन जिलों में स्थानीय युवाओं पर एनकाऊंटर स्थल के 3 किलोमीटर तक के दायरे में जाने पर रोक लगाते हुए उन्हें वहां न जाने की सलाह दी है। इस बारे जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक एस.पी. वैद का कहना है कि ‘‘हम तो सलाह दे सकते हैं और यदि फिर भी कोई व्यक्ति आग में कूदना चाहता है तो हम क्या कर सकते हैं।’’ 
 
पिछले कुछ समय के दौरान कश्मीर घाटी में कुछ स्थानीय लोगों द्वारा आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में बाधा डालने के रुझान में वृद्धि के दृष्टिïगत उन तत्वों पर कार्रवाई करना बहुत जरूरी है जो अपने ही सुरक्षा बलों के कार्य में बाधा डाल कर प्रदेश और देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं। 

 

ऐसे में जहां केंद्र सरकार द्वारा देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त तत्वों से सख्ती पूर्वक निपटने के लिए सेना को पूरी आजादी देना सर्वथा उचित है वहीं जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा घाटी में एनकाऊंटर वाली जगहों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना भी एक अच्छा कदम है। इस पर कठोरतापूर्वक क्रियान्वयन से घाटी में आतंकवाद को समाप्त करने में अवश्य सफलता मिलेगी।  —विजय कुमार 

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