Edited By Updated: 24 Dec, 2015 04:57 PM
अमृतसरः वर्ष 2015 सिख कौम के लिए उथल-पुथल वाला रहा जो इतिहास में अहम पन्ना बनेगा। इस साल नानकशाही कैलेंडर विवाद, सिख बंदियों की रिहाई का मामला, डेरा सिरसा प्रमुख को माफी देना और माफी रद्द करना, गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की घटनाएं,सरबत खालसा बुलाना और प्रबंधकों के खिलाफ देश द्रोह का मामला तथा अरदास में तबदीली अादि मुख्य घटनाएं रही।
इस वर्ष बड़ी संख्या में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं हुई। सरकार इन घटनाओं को रोकने में असफल भी साबित हुई, जिस कारण लोगों में काफी अाक्रोश रहा। इसी रोष स्वरूप लोगों ने कई दिनों तक यातायात तक बाधित रखा और बड़ी संख्या में सिख संगत सड़कों पर उतर अाई। लोगों के उग्र होने से सरकार चिंतित हो उठी अौर लोगों को मनाने के लिए सद्भावना रैलियां की।
ये विवाद रहे सुर्खियों में
नानकशाही कैलेंडर विवादः सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व की तारीख बदले जाने के बाद एक बार फिर नानकशाही कैलेंडर विवादों में रहा जिसे हल करने के लिए श्री अकाल तख्त साहिब पर पांच सिंह साहिबान की हुई बैठक में एक कमेटी बना दी गई। सिख कौम के एक विशेष अभियान के तहत विक्रमी कैलेंडर से अलग नानक शाही कैलेंडर तैयार कराया गया था। एस.जी.पी.सी. की कोशिश थी कि नानकशाही कैलेंडर तैयार कर सिख कौम को एकजुट किया जाए। इसके चलते एस.जी.पी.सी. के निर्देश पर 14 मार्च 2003 को एनआरआई पाल सिंह पुरेवाल ने नानकशाही कैलेंडर तैयार किया।
वर्ष 2015 के शुरू में ही सिख राजनीति सक्रिय हो गई। नानकशाही कैलेंडर विवाद कारण तख्त दमदमा साहब के जत्थेदार ज्ञानी बलवंत सिंह नंदगढ़ की छुट्टी हो गई। वह मूल नानकशाही कैलेंडर के समर्थक हैं और उन्होंने नानकशाही कैलेंडर में फिर संशोधन का विरोध किया, जिस का निष्कर्ष यह हुआ कि उनको जनवरी माह में शिरोमणि समिति की अंतरिक समिति की मीटिंग में पद से फारिग कर दिया गया।
बंदी सिखों की रिहाई का मामलाः बंदी सिखों की रिहाई की मांग को लेकर सूरत सिंह खालसा द्वारा मरण व्रत शुरू कर दिया गया, जो अभी भी जारी है। उनको कई बार कथित तौर पर जबरदस्ती अस्पताल ले जाया गया परन्तु वह अपने स्टैंड पर कायम रहे, जिस का निष्कर्ष यह हुआ कि दविन्दरपाल सिंह भुल्लर को दिल्ली की तिहाड़ जेल से 12 जून को अमृतसर की केंद्रीय जेल में शिफ्ट करना पड़ा।
शिरोमणि कमेटी के मुख्य सचिव की नियुक्ति का विरोध : शिरोमणि कमेटी समिति के सचिव दलमेघ सिंह की सेवा मुक्ति के बाद शिरोमणि कमेटी ने प्रबंध स्कीम में नया नियम शामिल करते मुख्य सचिव की नियुक्ति की। इस पद पर 28 अगस्त को मुख्य सचिव के तौर पर हरचरन सिंह को नियुक्त किया गया, जिसको तीन लाख रुपए प्रति माह वेतन मुकर्रर किया गया। इस नियुक्ति का सिख पंथ में बड़े स्तर पर विरोध हुअा। इस नियुक्ति के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया गया और अब यह मामला उच्च अदालत के विचार अधीन है, जिस की अगली सुनवाई 8 जनवरी को होनी है।
डेरा प्रमुख को माफी देने का विवाद: 24 सितम्बर को पंच सिंह सहबान की सभा में डेरा सिरसा प्रमुख को माफी देने का फ़ैसला किया गया, जिस का सिख संगत ने विरोध किया । संगत के विरोध कारण ही 16 अक्तूबर को सिंह साहिबान ने अपना फैसला वापस ले लिया।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरुपों की बेअदबी:बरगाड़ी में गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप की हुई बेअदबी के बाद राज्य में रोष की लहर दौड़ गई जिसके बाद कई जगह पर एेसी घटनाएं सामने अाई जिससे संगतें अाहत हुईं। इन घटनाअों पर कोई कार्रवाई न होने के रोष स्वरुप कई शिरोमणि सदस्यों तथा अकाली नेताओं ने ने इस्तीफे दिए। विधान सभा हलका खडूर साहब से कांग्रेसी विधायक रमनजीत सिंह सिक्की ने भी इस्तीफा दिया।
पंच प्यारों की तरफ से जत्थेदारों की जवाबतलबी: डेरा प्रमुख को मुफ करने और लोगों के गुस्से को देखते माफी रद्द करने के मामले में अकाल तख़्त के पंच प्यारों ने पांचों जत्थेदारों खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें तलब किया । जिसके बाद शिरोमणी कमेटी ने पंच प्यारों को निरस्त कर दिया। जत्थेदारों के उपस्थित न होने पर 24 अक्तूबर को पंच प्यारों ने अंतरिंग समिति को आदेश दिया कि जत्थेदारों की सेवाओं ख़त्म कर दीं जाएं। इस फ़ैसले शिरोमणि कमेटी और अकाली सरकार के हाथ- पैर फूल गए । निष्कर्ष के तौर पर शिरोमणि कमेटी को 26 अक्तूबर को ही पंच प्यारों को बहाल करने का फैसला करना पड़ा परन्तु शिरोमणि समिति ने इनको धर्म प्रचार समिति में तबदील कर दिया। इनमें से दो के तबादले पंजाब से बाहर कर दिए गए, परन्तु दोनों ने नई जगह पर जाने से इंकार कर दिया है। यह मामला अभी भी लटका हुअा है।
चब्बा में सरबत खालसा: सिख जगत में पनपे अाक्रोश को शांत करने के लिए सिख संगठनों ने सरबत खालसा बुलाने का फ़ैसला किया । सिख संगठनों ने दीवाली से एक दिन पहले 10 नवंबर को गांव चब्बा नजदीक सरबत ख़ालसा का अायोजन किया जहां प्रशासन की रोक के बावजूद लाखों की संख्या में संगत पहुंची। इस मौके तख्तों के जत्थेदारों को फारिग करने का फ़ैसला सुनाया गया । इनकी जगह पर नए जत्थेदार नियुक्त करने का ऐलान किया गया। अकाल तख़्त के जत्थेदार के तौर पर जेल में बंद जगतार सिंह हवारा को नियुक्त करने का ऐलान किया गया। उसकी ग़ैर -हाजिरी में ध्यान सिंह मंड को अकाल तख़्त का कार्यकारी जत्थेदार नियुक्त किया गया, तख़्त केसगढ़ साहब का जत्थेदार अमरीक सिंह अजनाला और तख्त दमदमा साहब का जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल को बनाया गया।
गुरु ग्रंथ साहब के सरूपों की बेअदबी की घटनाओं के रोष स्वरूप श्री दरबार साहिब में समूचे सिख जगत ने काली दीवाली मनाई।