Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jan, 2018 05:40 PM
मांसाहार का प्रचलन तो इस समय लगभग पूरी दुनिया में जोर पकडता जा रहा है। इसमें मुख्य तौर पर बकरा, मछली, पॉल्ट्री, जिसमें चिकन व अंडे सहित कुछ अन्य जीव भी शामिल हैं जो पूरी दुनिया में एक स्टैंडर्ड नॉनवैज माना जाता है, किन्तु फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं,...
अमृतसर (इन्द्रजीत/अरुण): मांसाहार का प्रचलन तो इस समय लगभग पूरी दुनिया में जोर पकडता जा रहा है। इसमें मुख्य तौर पर बकरा, मछली, पॉल्ट्री, जिसमें चिकन व अंडे सहित कुछ अन्य जीव भी शामिल हैं जो पूरी दुनिया में एक स्टैंडर्ड नॉनवैज माना जाता है, किन्तु फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें कुछ विशेष प्रकार के मांसाहारी व्यंजन बनते हैं।
इनमें से पंजाब के अन्य शहरों के साथ अमृतसर पहले स्थान पर है, जहां एक विशेष प्रकार का नॉन वैज फूड, जिसे खरौड़ा कहते हैं। इसका चलन इतना है कि 70 प्रतिशत से अधिक लोग खरौड़े के शौकीन हैं। इनकी खपत इतनी है कि कई जिलों के बकरों के तो क्या, भेड़ों व छत्तरों के खरौड़े भी लोग चट कर जाते हैं। इसकी गुरुनगरी में सबसे ज्याद खपत है। विवाह-शादियों पर लोग एडवांस में इसकी बुकिंग करवाते हैं। उक्त की डाक्टरी जांच के बिना ही धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। हालांकि इस मामले में न्यूरो एवं स्पाइन रोग विशेषज्ञ डाक्टरों का कहना है कि खरौड़े के सेवन से यूरिक एसिड पैदा होता है, जो हड्डियों व जोड़ों के लिए खतरनाक है, लेकिन लोग इस बारे में वहम का शिकार हैं कि खरौड़े खाने से हड्डियां मजबूत होती हैं और जोड़ों के दर्द दूर होते हैं।
क्या होते हैं खरौड़े?
बकरों को काटने के उपरांत झटकई लोग आम शहरों और प्रदेशों में इसके खुर (पैर) पक्षियों के खाने के लिए खुले में फैंक देते हैं, किन्तु कई जगहों पर उक्त खरौड़ों के बड़ी संख्या में खपतकार हैं। इन्हें बनाने के लिए लम्बी मेहनत करनी पड़ती है, इसमें कटे हुए बकरे के खुरों को पहले सैंकड़ों की संख्या में जमीन पर रखकर सीधी आग में जला दिया जाता है, इससे खुरों के बाल जल जाते हैं, इसके उपरांत बचे हुए मैटीरियल को गन स्टोव से साफ किया जाता है। इसके उपरांत इसे पका कर आम मांस की तरह परोसा जाता है। हालांकि इसे बनाने के लिए आम मांस की अपेक्षा 4 गुणा अधिक समय लगता है और अधिक ईंधन की खपत होती है।
ऊंचे दामों पर बिकता है सूप
कहते हैं ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ की कहावत भी खरौड़ो पर पूरी उतरती है। खरौड़े बनाने से पूर्व इसे घंटों देग में उबाला जाता है, इसके उपरांत पानी में उबाले हुए खरौड़ों के असर से बना हुआ पदार्थ सूप कहलाता है। इसे मिर्च-मसाले डालकर बीच में मक्खन के साथ लोगों को परोसा जाता है। अमृतसर में दो सौ मि.लि. सूप की कीमत 50 से 70 रुपए है जबकि यह मुफ्त में पड़ता है।
भ्रम का शिकार होकर पीते हैं लोग सूप
खरौड़ों के सूप के बारे में अमृतसर में यह एक आम कहावत है कि खरौड़ों का सूप पीने से हड्डियां मजबूत होती हैं और मर्दाना शक्ति बढ़ती है। ज्यादातर इस चीज का प्रचार ग्रामीण और पुराने बुजुर्ग टाइप लोग करते हैं, जबकि दूसरी ओर यदि दुर्घटना के कारण किसी की हड्डी टूट जाए तो उसके दोस्त व रिश्तेदार आर्थो अस्पताल में सूप के जग भर-भर कर ले जाते हैं। यहां तक कि कुछ डाक्टर भी मरीज को दिलासा देने के लिए इसे पीने की आज्ञा दे देते हंै।
अन्य प्रदेशों से भी आते हैं खरौड़े
अमृतसर में इसकी इतनी खपत है कि इसकी पूर्ति करने के लिए अन्य शहरों से भी इस नॉन वैज पदार्थ को दूसरे शहरों से मंगाया जाता है, जबकि जम्मू-कश्मीर के फौजी क्षेत्रों में जहां बकरे के खुरों को खाने की आज्ञा नहीं दी जाती, इसे बेकार कर दिया जाता है, वहां से बोरों में बंद होकर इसे अमृतसर लाया जाता है। इसके अतिरिक्त अम्बाला छावनी, हिमाचल, यहां तक कि उत्तराखंड के क्षेत्रों से भी खरौड़े अमृतसर में ही आते हैं, जहां इनकी खपत हो जाती है। बड़ी बात है कि आम तौर पर मांस की दुकानों में बकरों की जगह भेड़ों का मांस भी बिक जाता है जबकि उनके खुर भी बकरों के नाम से बेचे जाते हैं।