प्रापर्टी की करोड़ों की खरीदो-फरोख्त के खेल पर से उठा पर्दा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Feb, 2018 03:10 PM

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करोड़ों की बेनामी प्रापर्टी की खरीद-फरोख्त करने के खेल से उस समय पर्दा उठा, जब 7 वर्ष से भी ज्यादा समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई में कई परतें खुलीं। करोड़ों की जमीन खरीदने का सौदा करने वाले 3 खरीदारों में से एक ने अपने 2 भागीदारों से पावर आफ अटार्नी...

अमृतसर(महेन्द्र): करोड़ों की बेनामी प्रापर्टी की खरीद-फरोख्त करने के खेल से उस समय पर्दा उठा, जब 7 वर्ष से भी ज्यादा समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई में कई परतें खुलीं। करोड़ों की जमीन खरीदने का सौदा करने वाले 3 खरीदारों में से एक ने अपने 2 भागीदारों से पावर आफ अटार्नी लेकर रजिस्ट्री (सेल डीड) करवाने, एग्रीमैंट की शर्त अनुसार बयाने की रकम से दोगुनी रकम हासिल करने तथा पक्का स्टे-आर्डर हासिल करने के लिए जमीन मालिकों के खिलाफ स्थानीय अदालत में जो केस दायर कर रखा था, उसकी सुनवाई के दौरान उत्तरवादी पक्ष के कौंसिल मनीष बजाज तथा मनिक बजाज ने बहस की।

स्थानीय अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन) अमित मल्हन की अदालत ने सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद पटीशनर के इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है, जिससे पटीशनर पक्ष द्वारा एग्रीमैंट के समय दी गई 38 लाख रुपए की राशि भी एक तरह से जब्त हो गई है। अदालत में दायर किए गए सिविल मुकदमे के अनुसार स्थानीय गोपाल नगर, मजीठा रोड निवासी नरिन्द्र सिंह पुत्र सरदारा सिंह, गांव मानांवाला निवासी कंवलजीत सिंह पुत्र भगवान सिंह तथा शरीफपुरा निवासी संजीव कुमार पुत्र बावा राम ने वेरका निवासी गुरमेज सिंह, नवतेज सिंह पुत्र महिन्द्र सिंह तथा उनकी माता परमजीत कौर से वेरका में स्थित उनकी 52 कनाल 2 मरले (साढ़े 6 एकड़ से 2 मरले ज्यादा) जमीन 39 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से दरअसल एग्रीमैंट 29 दिसम्बर 2006 को खरीद करने का सौदा करते हुए 38 लाख रुपए बयाने के तौर पर पेशगी अदा किए थे।

जमीन की सेल डीड (रजिस्ट्री) करवाने के लिए आखिरी तारीख 31 दिसम्बर 2007 तय की गई थी। निश्चित अवधि में सेल डीड न होने के कारण खरीदार पक्ष में से एक संजीव कुमार ने अपने 2 अन्य पार्टनरों से अटार्नी लेकर जमीन मालिकों के खिलाफ स्थानीय अदालत में 29 दिसम्बर 2010 को सिविल मुकदमा दायर कर दिया था, जिसमें उसने जमीन मालिकों से उनकी उक्त जमीन की सेल डीड करवा कर देने या फिर बयाने के तौर पर वसूल की गई 38 लाख रुपए की रकम की दोगुणी रकम 18 फीसदी वाॢषक ब्याज सहित वापस लौटाने तथा फैसला होने तक जमीन मालिकों की उक्त जमीन किसी भी अन्य के पास किसी भी तरह से बेचने तथा किसी भी तरह से ट्रांसफर करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

फाइनैंसर ने गंवाए लाखों रुपए
मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान पटीशनर संजीव कुमार के 2 अन्य पार्टनरों नरिन्द्र सिंह तथा कंवलजीत सिंह से उत्तरवादी पक्ष के कौंसिल मनीष बजाज तथा मनिक बजाज ने जब सवाल किए तो उसके जवाब में उनका कहना था कि वे किसी स्कूल में 10 से 12 हजार रुपए प्रतिमाह पर प्राइवेट नौकरी करते हैं और किराए के मकान में रहते हैं। ये बातें सामने आने पर उन्हें यह भी स्वीकार करना पड़ा कि उनके पास बाकी रकम नहीं थी, बल्कि वास्तव में इस जमीन का सौदा उनके नाम पर जरूर हुआ था, लेकिन सारे पैसे किसी फाइनैंसर ने ही लगाने थे।

जिस जमीन का वर्ष 2006-2007 में 2 करोड़ 54 लाख रुपए में सौदा किया गया था, उसकी मौजूदा कीमत 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा बताई जाती है। इसलिए करोड़ों की इस जमीन की हुई सौदेबाजी के पर्दे के पीछे बेनामी प्रापर्टी की खरीदो-फरोख्त छुपी हुई थी। इसका खुलासा इस मामले की सुनवाई के दौरान स्वयंमेव हो गया था। पर्दे के पीछे रह कर जो फाइनैंसर कानूनी लड़ाई लड़ रहा था, इसमें कानूनी मात मिलने के बाद वह बयाने के तौर पर दिए न सिर्फ 38 लाख, बल्कि सेल-डीड (रजिस्ट्री) के दावे पर कोर्ट फीस के तौर पर खर्च किए गए 5.75 लाख रुपए भी गवां बैठा है।

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